Book Title: Samyag Darshan Part 03
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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सम्यग्दर्शन : भाग-3]
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१. स्वभावभूत ज्ञानक्रिया का तो निषेध नहीं हो सकता। (यह ज्ञानी की क्रिया है)।
२. परभावभूत क्रोधादि क्रिया का निषेध किया गया है। (यह अज्ञानी की क्रिया है)।
३. तीसरी जड़ की क्रिया है; उसके साथ जीव को कर्ता -कर्मपने का सम्बन्ध नहीं है। __ ज्ञान के साथ आत्मा को त्रिकाल एकता (नित्य तादात्म्य) है परन्तु क्रोधादिक के साथ त्रिकाल एकता नहीं है; वह क्षणिक संयोगमात्र होने से संयोगसिद्धसम्बन्धरूप है, तथापि अज्ञानी इन दोनों को (ज्ञान को और क्रोध को) एकमेक मानकर वर्तता है, उनके भेद को नहीं देखता, तब तक वह मोहादि भावरूप परिणमता हुआ कर्मबन्धन करता है – ऐसा सर्वज्ञ भगवान कहते हैं।
एक........ पत्र बारम्बार तुम्हारे पत्र में आत्मा की जिज्ञासुता को पुष्टि मिले - ऐसा लिखते हो, वह पढ़कर आनन्द होता है और जीव को प्रेरणा भी मिलती है। जीवन में आत्मा की जिज्ञासा सदा चालू रहना, प्रत्येक प्रसङ्ग में उसकी जागृति रहना, वह अवश्य लाभ का कारण होता है। जीवन में जिसकी तीव्र भावना पोसाती है वह एक बार अवश्य कार्यरत होगा ही। ज्ञानी सन्तों के समीप रहकर अन्तर की सच्ची जिज्ञासुता जगाना और फिर हमेशा उसके प्रयत्न की पुष्टि किये करना, ऐसे प्रयत्न द्वारा अवश्य निज कार्य को साधूंगा।
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