Book Title: Samyag Darshan Part 03
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
View full book text
________________
www.vitragvani.com
सम्यग्दर्शन : भाग-3]
[79
जीमन (भोजन) परोसा जाता है, वैसे यहाँ मोक्ष के महोत्सव में सन्त सम्पूर्ण जगत को सामूहिक आमन्त्रित करके भेदज्ञान का अपूर्व जीमन परोसते हैं। भाई ! सन्त तुझे आत्मा का सच्चा भोजन जिमाते हैं, जिसके स्वाद से तुझे अतीन्द्रिय आनन्दरस का अनुभव होगा; इसलिए एक बार उसका रसिया हो... और जगत् के दूसरे रस को छोड़।
सम्यक्त्व की आराधना की महिमा सम्यक्त्व और पुण्य के बीच कितना अन्तर है, यह परमात्मप्रकाश के निम्न कथन से स्पष्ट ख्याल में आता है।
निर्मल सम्यक्त्वाभिमुखानां मरणमपि भद्रं। तेन विना पुण्यमपि समीचिनं न भवति॥२-५८॥ निर्मल सम्यक्त्व की अभिमुखतापूर्वक (आराधनापूर्वक) मरण भी भला है परन्तु उसके बिना पुण्य भी समीचीन नहीं है, भला नहीं है।
जेणियदंसण-अहिमुहा सोक्खु अणंतु लहंति। तं विणु पुण्णु करंता वि दुक्खु अणंतु सहति ॥२-५९॥
जो जीव, निजदर्शन के सन्मुख है, अर्थात् सम्यक्त्व का आराधक है, वह तो अनन्त सुख पाता है और उसके बिना जीव, पुण्य करने पर भी अनन्त दुःख सहता है।
इसलिए हे जीव! तू सम्यक्त्व की आराधना कर।
Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.