Book Title: Samyag Darshan Part 03
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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सम्यग्दर्शन : भाग-3]
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अनुभव के लिये शिष्य की मङ्गल उमङ्ग
अनुभव के लिये मङ्गल उमङ्ग से शिष्य प्रश्न करता है भगवान! पक्षातिक्रान्त का क्या स्वरूप है ? पक्षातिक्रान्त जीव कैसा होता है ? उसकी अनुभूति कैसी होती है ? देखो, निर्विकल्प आनन्द के अनुभव के लिये शिष्य को मङ्गल उमङ्ग उठी है... ऐसे अनुभव की उमङ्गपूर्वक प्रश्न उठा है, वह प्रश्न भी मङ्गल है..... गुरु के प्रति अत्यन्त आस्था है और अनुभव की उत्कण्ठा है... अनुभव के किनारे आकर गुरु को पूछता है कि प्रभु ! निर्विकल्प अनुभव का स्वरूप क्या है और अनुभव की विधि क्या है ? पक्षातिक्रान्त होने के लिये किनारे पर खड़ा है ऐसे शिष्य का हृदय भी मङ्गल है और वह ऐसे अनुभव के लिये मङ्गल प्रश्न पूछता है । उसके उत्तर में आचार्यदेव, (समयसार) १४३ गाथा में निर्विकल्प अनुभव का स्वरूप बतलाते हैं ।
नयद्वयकथन जाने हि केवल समय में प्रतिबद्ध जो । नयपक्ष कुछ भी नहिं ग्रहे, नयपक्ष से परिहीन वो ॥ १४३ ॥
देखो, यह महा उत्तम गाथा है । सम्यक् श्रुतज्ञानी को अनुभव के समय केवली भगवान के साथ रखा है। चौथे गुणस्थान के धर्मात्मा भी अनुभव के काल में केवली भगवान जैसे पक्षातिक्रान्त हैं। जैसे केवली भगवान कोई विकल्प नहीं करते; उसी प्रकार श्रुतज्ञानी धर्मात्मा भी किसी विकल्प को उपयोग के साथ एकमेक नहीं करते ।
आहा ! ऐसी अनुभूति में कैसा आनन्द का रस आता है, उसे
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