Book Title: Samyag Darshan Part 03
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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सम्यग्दर्शन : भाग-3]
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ज्ञान कहा जाता है। उसके संस्कार दूसरे भव में भी आत्मा के साथ ही रहते हैं।
प्रश्न : निर्विकल्पदशा के समय जो अन्तर्मुख ज्ञान-उपयोग है उस ज्ञान का ज्ञेय, ज्ञान है या आनन्द?
उत्तर : उस अन्तर्मुख उपयोग का ज्ञेय पूरा आत्मा है; ज्ञान और आनन्द सब उसमें अभेद आ जाता है; उस ज्ञान में आनन्द का वेदन व्यक्त है।
प्रश्न : आप पूर्व जन्म को मानते हो? पूर्व जन्म किस प्रकार अनुभव किया जा सकता है ?
उत्तर : हाँ; आत्मा अनादि-अनन्त है, इसलिए इससे पहले दूसरे भव में कहीं उसका अस्तित्व था। आत्मा कहाँ था? यह भले ही कदाचित् न जाने परन्तु इतना निर्णय तो होता ही है कि इससे पहले आत्मा का अस्तित्व कहीं था ही। ऐसा कोई नियम नहीं है कि जातिस्मरणज्ञान हो तो ही आत्मज्ञान हो। किसी को जातिस्मरण -ज्ञान न होने पर भी आत्मज्ञान होता है; किसी को जातिस्मरण -ज्ञान हो, तथापि आत्मज्ञान नहीं भी होता। किसी को दोनों साथ वर्तते हैं।
Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.