Book Title: Samyag Darshan Part 03
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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[ सम्यग्दर्शन : भाग - 3
होकर ही सर्वज्ञ जैसे आत्मा की पहचान होती है और इस प्रकार स्वसन्मुख हो, तभी सर्वज्ञ की वास्तविक पहचान होती है ।
प्रश्न : आत्मा किसे कहना ?
उत्तर : जिसे आत्मा सम्बन्धी शङ्का उठती है, वह स्वयं आत्मा ही है । शङ्का उठती है, वह आत्मा के अस्तित्व में उठती है । आत्मा न हो तो शङ्का कौन करे ? इसलिए जो शङ्का करता है और जो जाननेवाला तत्त्व है, वह आत्मा है । शङ्का कहीं इस जड़ शरीर में नहीं है; शङ्का करनेवाला जो तत्त्व है, वह चैतन्य है, वही आत्मा है।
प्रश्न : अभी मोक्ष होता है ?
उत्तर : महाविदेहक्षेत्र में अभी भी जीव, मोक्ष प्राप्त करते हैं । इस क्षेत्र में अभी पुरुषार्थ की न्यूनता के कारण मोक्ष भले न हो परन्तु अन्तर में आत्मा के सम्यक् अनुभव से ऐसा निर्णय हो सकता है कि अब अल्प काल में ही आत्मा सम्पूर्ण मुक्त होगा । सम्यग्दर्शनादिरूप मोक्ष का मार्ग इस काल में हो सकता है, उसके लिये अन्तर में बहुत श्रवण - मंथन और स्वभाव की ओर का अभ्यास चाहिए।
प्रश्न : अनादि के मिथ्यादृष्टि जीव को सम्यक्त्व किस गति में होता है ?
उत्तर : चारों ही गतियों में हो सकता है; उसमें प्रथम उपशम सम्यक्त्व होता है। जीव सातवें नरक में भी सम्यक्त्व प्राप्त कर सकता है । क्षायिक सम्यक्त्व का प्रारम्भ मनुष्यगति में ही होता है ।
प्रश्न : आध्यात्मिक ज्ञान किसे कहा जाता है ?
उत्तर : आत्मा के आश्रय से जो ज्ञान हो, उसे आध्यात्मिक
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