Book Title: Samyag Darshan Part 03
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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[सम्यग्दर्शन : भाग-3
लक्ष्य परद्रव्य के प्रति नहीं होता; चैतन्य के ही अवलम्बन से वे सम्यग्दर्शन आदि प्रगट होते हैं, इसलिए पुद्गलद्रव्य, चैतन्य के परिणाम को करता नहीं है। पुद्गलद्रव्य की अपेक्षा से चैतन्य के निर्मल परिणाम परद्रव्य हैं। उन परद्रव्य परिणाम में पुद्गल व्याप्त नहीं होता। पुद्गल कहने से पुद्गल की ओर का भाव भी उसमें ही जाता है। क्या शुभराग का अवलम्बन था, इसलिए सम्यग्दर्शन हुआ? - नहीं; यदि राग के अवलम्बन से सम्यग्दर्शन हो, तब तो राग, सम्यग्दर्शन में अन्तर्व्यापक हो जाये परन्तु ऐसा नहीं है। राग को चैतन्य के निर्मल परिणाम के साथ कर्ता-कर्मपना नहीं है।
देह की क्रिया, चैतन्यपरिणाम का कारण हो - ऐसा भी नहीं है। चैतन्य के निर्मल परिणाम में सर्वत्र (आदि-मध्य-अन्त में) चैतन्य ही व्यापक है, उसमें कहीं राग या पुद्गल व्यापक नहीं है।
दर्शनमोहकर्म नष्ट हुआ और सम्यग्दर्शन प्रगट हुआ - तो क्या उसमें पुद्गलकर्म कर्ता और सम्यग्दर्शन उसका कार्य- ऐसा है ? - नहीं; कर्म में दर्शनमोहपर्याय नष्ट होकर दूसरी जो अवस्था हुई, उसमें पुद्गल ही व्यापक है और जीव में जो सम्यग्दर्शन हुआ, उसमें जीव स्वयं ही व्यापक है। इस प्रकार पुद्गल को ज्ञानी के परिणाम के साथ कर्ता-कर्मपना नहीं है। अज्ञानी को पुद्गलकर्म के साथ निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध है परन्तु यहाँ तो ज्ञानी के परिणाम की बात है। ज्ञानी के निर्मल परिणाम को पुद्गलकर्म के साथ निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध भी टूट गया है। पुद्गल से निरपेक्षरूप से ही ज्ञानी अपने सम्यग्दर्शनादि भावोंरूप परिणमित होता है। अनादि के अज्ञान से हुआ जो विकार के साथ का कर्ता -कर्मपना; वह ज्ञानी को छूट गया है।
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