Book Title: Samyag Darshan Part 03
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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सम्यग्दर्शन : भाग-3]
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परद्रव्य के साथ कर्ता-कर्मपना नहीं है; शुद्धपर्याय को द्रव्य के साथ ही कर्ता-कर्मपना है । द्रव्य के साथ पर्याय का एकत्व होने पर निर्मल कार्य हुआ है । द्रव्य ही अपनी शक्ति से निर्मल पर्याय का कर्ता होता है; वहाँ उसके निर्मल कार्य में विकार का और कर्म इत्यादि का तो अभाव ही है। अज्ञानभाव से तो जीव ही विकार का कर्ता है परन्तु यहाँ तो ज्ञानी की पहचान की बात है; भेदज्ञान द्वारा जहाँ अज्ञान का नाश हुआ, वहाँ अज्ञानजनित कर्ता - कर्मपना भी ज्ञानी को छूट गया। उस ज्ञानी को परद्रव्य के साथ कर्ता-कर्मपना किञ्चित् मात्र भी नहीं है। सम्यग्दर्शन - ज्ञानादि निर्मल परिणामों का ही कर्तारूप से प्रकाशित होता हुआ ज्ञानी शोभित होता है ।
ज्ञानी अपनी ओर पर की परिणति को भिन्न-भिन्न जानता हुआ, ज्ञानभाव से ही प्रवर्तता है और पुद्गलद्रव्य अपनी या पर की परिणति को किञ्चित्मात्र भी जानता नहीं – रागादिभाव भी स्व का या पर को नहीं जानते, इसलिए वे भी ज्ञान से भिन्न ही हैं । इस प्रकार स्पष्ट भिन्नपना होने से ज्ञान को और पर को किञ्चित्मात्र भी कर्ता - कर्मपना नहीं है। जहाँ ऐसी भेदज्ञान ज्योति जागृत हुई, वहाँ अज्ञानजनित कर्ता-कर्मपने को वह चारों ओर से अत्यन्त नष्ट कर डालती है। जब तक भेदज्ञान ज्योति प्रगट नहीं हुई, तब तक ही भ्रम के कारण जीव- - पुद्गल को कर्ता-कर्मपना भासित होता है और ज्ञान तथा राग के बीच भी अज्ञानी को भ्रम से ही कर्ताकर्मपना भासित होता है । ज्ञानभाव में उस कर्ता-कर्म प्रवृत्ति का अत्यन्त अभाव है। ज्ञानस्वभावी भगवान अपने ज्ञानमय कार्य में शोभित होता है, इसका नाम धर्म है और यह मोक्ष का मार्ग है ।
Shree Kundkund - Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.