Book Title: Samyag Darshan Part 03
Author(s): Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
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सम्यग्दर्शन : भाग-3]
1
समकित सावन आयो रे.....
सम्यग्दर्शन होने पर आत्मा में चैतन्यरस की धारा बरसती है, अज्ञानदशा के तीव्र आताप शमन हो जाते हैं... अनुभवरूपी बिजली की चमकार होती है.... आत्मभूमि में साधकभावरूपी अंकुर जगते हैं.... भ्रमरूपी धूल उड़ती नहीं और असंख्य आत्मप्रदेशों में सर्वत्र आनन्द... आनन्द... छा जाता है - इत्यादि प्रकार से सम्यग्दर्शन को श्रावण माह की वर्षा ऋतु की उपमा देकर कवि भूधरदासजी कैसा भाववाही वर्णन करते हैं, वह निम्न काव्य से ज्ञात होगा। (श्रावण माह में प्रसिद्ध होता, यह काव्य आध्यात्मरसिकों को विशेष प्रिय लगेगा)।
अब मेरे समकित-सावन आयो.. बीती कुरीति-मिथ्यामति ग्रीषम, पावस सहज सुहायो......
.....अब मेरे समकित-सावन आयो। आज हमारे सम्यक्त्वरूपी श्रावण आया है; कुरीति और मिथ्यामतिरूपी ग्रीष्मकाल अब बीत गया है और आत्मिकरस की सहज वर्षा शोभ रही है। आज मेरे ऐसा सम्यक्त्वरूपी श्रावण आया है।
अनुभव-दामिनी दमकन लागी, सुरति घटा घन छायो, बोले विमल विवेक-पपीहा, सुमति सुहागिन भायो
.....अब मेरे समकित-सावन आयो.... सम्यक्त्वरूपी श्रावण आने पर, आत्म-अनुभवरूपी बिजली चमकने लगी है और सम्यक्रुचिरूप घनघोर घटा से आत्मिक आकाश आच्छादित हो गया है; विमल, विवेकरूपी पपीहा 'पीयु...
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