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हक़ की स्त्री के साथ विषय सेवन के लिए भी 'ज्ञानीपुरुष' से आज्ञा लेकर बनाई गई नियम मर्यादा के अनुसार ही (महीने में दो, पाँच या सात दिन का) हो, तब जाकर धीरे-धीरे विषय कम होते-होते निर्मूल हो जाता
५. अणहक्क के विषयभोग, नर्क का कारण
'अक्रमविज्ञान' में विवाहितों के लिए 'ज्ञानीपुरुष' ने एक ही जोखिम बताया है कि 'जो लोकमान्य है, ऐसे हक़ के विषय को अक्रम मार्ग में निकाली बाबत के तौर पर मान्य किया है, लेकिन अणहक्क के विषय सेवन का, यानी परस्त्री या परपुरुषगमन का सर्वांश निषेध है। अणहक्क के विषय सेवन से ठेठ नर्कगति का अधिकारी बन जाता है। क्योंकि वकील यदि गुनाह करे तो वह भयंकर दंड का पात्र होता है, उसी प्रकार 'स्वरूपज्ञान' की प्राप्ति के बाद 'महात्मा' बना व्यक्ति अणहक्क के विषय सेवन से नर्कगति का पात्र बनता है। यदि कभी ऐसा दोष हो जाए तो 'ज्ञानीपुरुष' के सामने प्रत्यक्ष में आलोचना-प्रतिक्रमण-प्रत्याख्यान हो जाए, तो जोखिमदारी कुछ हलकी हो जाएगी और छूटा जा सकेगा। ऐसा दोष फिर यदि मन से या दृष्टि से भी हो जाए तो भी उसे नहीं चला सकते। फिर भी यदि ऐसा हो जाए तो 'ज्ञानीपुरुष' द्वारा दिया गया ‘शूट ऑन साइट' प्रतिक्रमण करना आवश्यक है और साथ ही, ऐसा दोष हुआ उसके लिए दिल से पश्चाताप के साथ खेद, खेद और खेद रहना चाहिए।
६. विषय बंद वहाँ दखलंदाजी बंद पत्नी के साथ क्लेशमय और कलहयुक्त व्यवहार का मूल कारण विषय ही है। उसमें स्त्री पुरुष को वश में नहीं करती, लेकिन पुरुष की विषय लोलुपता ही पुरुष को परवश बनाती है। स्त्री के साथ वीतरागी व्यवहार तभी संभव हो पाता है कि जब पुरुष विषयासक्ति में से छूट जाए। सच्चा पुरुष तो स्त्री के पास कभी भी विषय की याचना नहीं करेगा। यदि पुरुष स्त्री से विषय की याचना करे तो उसका प्रभाव स्त्री पर कभी नहीं पड़ता। संसार व्यवहार की गरज़ के बजाय विषय की गरज़ ही पुरुष को
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