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पुराणनिर्माणाधिकरणम् मत्स्यपुराण- पुराणं सर्वशास्त्राणां प्रथमं ब्रह्मणा स्मृतम्।
अनन्तरं च वक्त्रेभ्यो वेदास्तस्य विनिर्गताः॥१॥ पुराणमेकमेवासीलदा: कल्पान्तरेऽनघ। त्रिवर्गसाधनं पुण्यं शतकोटिप्रविस्तरम् ॥२॥ कालेनाग्रहणं दृष्ट्वा पुराणस्य तपो नृप।
तदष्टादशधा कृत्वा भूर्लोकेऽस्मिन् प्रकाश्यते॥३॥ उक्तञ्च बृहन्नारदीयेऽपि
ब्रह्माण्डं च चतुर्लक्षं पुरात्वेन पठ्यते। तदेव व्यस्य गदितमत्राष्टादशधा पृथक्॥१॥ पाराशर्येण मुनिना सर्वेषामपि मानद।
वस्तु दृष्ट्वाथ तेनैव मुनीनां भावितात्मनाम्॥२॥ चार लाख श्लोकों का 'ब्रह्माण्ड पुराण' ही पुराण नाम से जाना जाता है उसी ब्रह्माण्ड पुराण को व्यास पद्धति से अट्ठारह भागों में पृथक् किया गया है (१) ब्राह्म (२) पाद्म (३) वैष्णव (४) शैव (५) भागवत (६) नारदीय (७) मार्कण्डेय (८) आग्नेय (९) भविष्यत् (१०) ब्रह्मवैवर्त (११) लैङ्ग (१२) वाराह (१३) स्कन्द (१४) वामन (१५) कौर्म (१६) मात्स्य (१७) गारुड़ (१८) ब्रह्माण्ड पुराण-इन्हीं अट्ठारह पुराणों की संज्ञा महापुराण है।
पण्डित मोतीलाल शास्त्री. .. पुराणं सर्वशास्त्राणां प्रथमं ब्रह्मणा स्मृतम्।
: अनन्तरं च वक्त्रेभ्यो वेदास्तस्य विनिर्गता॥ ___ इस श्लोक से पुराणों का प्रवचन और श्रवण वेदसंहिता तथा ब्राह्मणों से पूर्व मानते हैं, रचना नहीं, परन्तु यहाँ विचारणीय है कि पण्डित मधुसूदन ओझा ने 'पुराणानिर्माणाधिकरणम्' के प्रारम्भ में ही इस श्लोक को ब्रह्माण्डपुराण से सम्बन्धित मानते हुए कहा है—“अथैतत्कतिपयमन्त्रब्राह्मणग्रन्थाविर्भावकालादपि पूर्वं तत्समकालमेव वा आसीदेको ब्रह्माण्डपुराणाख्यो वेदविशेषः सृष्टि-प्रतिसृष्टि-निरूपणात्मा" इदं वा अग्रे नैव किञ्चिदासीदित्यादिनोपक्रान्त इति विज्ञायते। तत्परतयैव च "ऋग्वेदो यजुर्वेदः सामवेदोऽथर्वाङ्गिरस इतिहासःपुराणं विद्या उपनिषदः श्लोकाः सूत्राण्यनुव्याख्यानानानि व्याख्यानानीति" शतपथब्राह्मणादिवचनान्तर्गतं पुराणपदमुपनीयते।"
. पण्डित ओझा के अनुसार ब्रह्माण्ड पुराण का वेदसे पूर्व अथवा वेद के समकाल में प्रवचन और श्रवण ही नहीं अपितु निर्माण भी हो गया था।
ग्रन्थ के सम्पादकत्व का विशिष्ट दायित्व निर्वहन करने के साथ ही पण्डितवर्य श्री अनन्त शर्मा ने वैदुष्यपूर्ण सम्पादकीय एवं मूलपाठ के शुद्धीकरण का कार्य सम्पन्न करके इस
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