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पुराणनिर्माणाधिकरणम्
काश्यपः संहिताकर्ता सावर्णिः शांशपायनः ।
लोमहर्षणिका चान्या तिसृणां मूलसंहिता ॥ ४ ॥ ३.६.१८
( काश्यप संहिता - सावर्णि संहिता - शांशपायनसंहितानां मूलभूता संहिता लोमहर्षणकृता । वि.पु. ३ अंशे, ६ अध्याये १६ - १९ श्लोकः ) । प्रथमं व्यासः षट् संहिताः कृत्वा मत्पित्रे रोमहर्षणाय प्रादात् तस्य च मुखादेते त्रय्यारुण्यादयः एकैकां संहितामधीयन्त । एतेषां षण्णां शिष्योऽहं ( उग्रश्रवाः सूतः) ताः सर्वाः समधीतवान् ॥
( भाग. १२ स्कं., ७ अध्याय ५ श्लोक टीका श्रीधरः । )
सुमतिः अग्निवर्चाः त्रय्यारुणिः कश्यपश्च सावर्णिरकृतव्रणः । शिंशपायन हारीतौ षड् वै पौराणिका इमे ॥ ४ ॥
अधीयन्त व्यासशिष्यात् संहितां मत्पितुर्मुखात् । एकैकामहमेतेषां शिष्यः सर्वाः समध्यगाम् ॥५ ॥
काश्यपगोत्रीय अकृतव्रण सावर्णि और शांशपायन — ये तीन संहिताकर्त्ता हैं। उन तीनों संहिताओं की आधार एक लोमहर्षण की संहिता है ॥ ४ ॥ ( विष्णु पुराण ६-३, १५१८)
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(काश्यप संहिता, सावर्णि संहिता, शांशपायन संहिता की मूलभूत संहिता लोमहर्षण द्वारा रचित संहिता है । विष्णु पुराण ३ अंश ६ अध्याय १६- १९ तक) पहले व्यास ने छः संहिताओं की रचना कर मेरे पिता रोमहर्षण को दी और उनके मुख से इन आदि ने एक-एक संहिता का अध्ययन किया । इन छओं के शिष्य मैंने ( उग्रश्रवा सूत ने ) उन सब संहिताओं का अध्ययन किया । ( भाग १२ स्क ७ अध्याय ५ श्लोक टीका श्रीधर कृत)
त्रय्यारुणि, कश्यप, सावर्णि, अकृतव्रण,
शांशपायन और हारीत इन छः पौराणिकों व्यास के शिष्य मेरे पिता के मुख से एक-एक संहिता का अध्ययन किया । इनके शिष्य मैंने सभी का अध्ययन किया ॥ ४-५ ॥
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