________________
१०२
पुराणनिर्माणाधिकरणम् "दशभिर्लक्षणैर्युक्तं पुराणं तद्विदो विदुः। केचित् पञ्चविधं ब्रह्मन् महदल्पव्यवस्थया॥१॥"
(भा. १२ स्क. ७ अ. ९ श्लोक) दश लक्षणानि तु भागवतद्वादशस्कन्धे सप्तमाध्याये तथा ब्रह्मवैवर्ते कृष्णजन्मखण्डे १३२ अध्याये द्रष्टव्यानि।
मदन्वये च ये सूताः सम्भूता वेदवर्जिताः। तेषां पुराणवक्तृत्वं वृत्तिरासीदजाज्ञया॥१॥
(कू.पु. १२ अ. २८ श्लो. ३९) आख्यानैश्चाप्युपाख्यानैर्गाथाभिः कल्पशुद्धिभिः। पुराणसंहितां चक्रे . पुराणार्थविशारदः॥१॥ वि.पु. ३.६.१५ प्रख्यातो व्यासशिष्योऽभूत सूतो वै लोमहर्षणः। पुराण संहितां तस्मै ददौ व्यासो महामुनिः॥२॥ ३.६.१६ सुमतिश्चाग्निवर्चाश्च मित्रयुः शांशपायनः। अकृतव्रणोऽथ सावर्णिः षटिशष्यास्तस्य चाभवन्॥३॥ ३.६.१७
- हे ब्रह्मन् ! महत् और अल्प की व्यवस्था से पुराणविद् पुराण को दश लक्षणों से युक्त मानते हैं. कुछ पुराणविद् पाँच प्रकार के लक्षणों से युक्त मानते हैं। (भा. १२ स्क. ७ अ. ९ श्लोक) ... दश लक्षण तो भागवत के द्वादश स्कन्ध के सातवें अध्याय में तथा ब्रह्मवैवर्त में कृष्णजन्म खण्ड में एक सौ बत्तीसवें अध्याय में ज्ञातव्य है।
मेरे वंश में वेद वर्जित जो सूत उत्पन्न हुए हैं उनकी ब्रह्मा की आज्ञा से पुराण प्रवचन वृत्ति (आजीविका) निश्चित की गयी॥१॥ .. तदनन्तर पुराणार्थविशारद व्यासजी ने आख्यान, उपाख्यान, गाथा और कल्पशुद्धि के सहित पुराणसंहिता की रचना की॥१॥
- रोमहर्षण सूत व्यास जी के प्रसिद्ध शिष्य थे। महामुनि व्यास जी ने उन्हें पुराणसंहिता का अध्ययन कराया॥२॥ - उन सूतजी के सुमति, अग्निवर्या, मित्रयु, शांशपायन, अकृतव्रण और सावर्णिये छः शिष्य थे॥३॥
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org