Book Title: Puran Nirmanadhikaranam
Author(s): Madhusudan Oza, Chailsinh Rathod
Publisher: Jay Narayan Vyas Vishwavidyalay

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Page 117
________________ विद्यावाचस्पति पण्डित मधुसूदन ओझा वेद के स्वतन्त्रप्रज्ञ, समीक्षणशिरोमणि विद्वान् थे। उन्होंने वेदार्थ के सर्वथा अभिनव चिन्तन का राजमार्ग प्रस्तुत किया है। वेद तथा ब्राह्मणग्रन्थों के अन्तःसाक्ष्यों से वैदिक तत्त्वों की विवेचना करने की उनकी पद्धति प्राचीन होते हुए भी जिस विधि से प्रस्तुत की गयी है सर्वथा विलक्षण प्रतीत होती है। यहाँ उनकी पुराणदृष्टि को प्रमुख रूप से बताने का यत्न है जिससे इस लघुकाय किन्तु असाधारण वैशिष्ट्य से पूर्ण ग्रन्थ को सरलता से समझा जा सके। ___सर्वप्रथम वे यह चौंकाने वाला तथ्य सामने रखते हैं कि ब्रह्माण्डपुराण नाम का एक वेद था। यह ऐसा ही नाम है जैसे ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद नाम हैं। ब्रह्माण्डपुराण वेद उस काल की रचना है जब अनेक मन्त्रों और ब्राह्मणों का भी आविर्भाव नहीं हुआ था। स्पष्टीकरण तथा प्रामाणिकता के लिए वे शतपथ ब्राह्मण का प्रघट्टक 'ऋग्वेदोयजुर्वेदः सामवेदोऽथर्वाङ्गिरस.....व्याख्यानानि' उद्धृत करते हुए बताते हैं कि यहाँ आया 'पुराण' नाम इस 'ब्रह्माण्ड पुराण' वेद को ही बना रहा है। यह पुरावृत्त परम्परा को बताने वाला है साथ ही सृष्टि विद्या सम्बन्धी विचार भी देता है अतः इसका यह 'ब्रह्माण्डपुराणवेद' नाम है। ____ अपने इसी विचार को वे मत्स्यपुराण के उद्धरण से भी स्पष्ट करते हैं जहाँ बताया गया है कि ब्रह्मा ने सर्वप्रथम सभी शास्त्रों के पूर्व पराण का स्मरण किया तदनन्तर वेदों का उच्चारण किया। यह पुराण शतकोटि विस्तार वाला था। बृहन्नारदीयपुराण द्वारा तो वे उस पुराण का नाम भी 'ब्रह्माण्ड पुराण' बता देते हैं। यह ब्रह्माण्ड पुराण ही कालान्तर में पुराण के 18 प्रतिपाद्य विषयों के आधार पर 18 महापुराणों के रूप में आया। इन 18 महापुराणों में अन्तिम का नाम ब्रह्माण्ड पुराण है। यह बताकर वे यह बता देना चाहते हैं कि यह 'ब्रह्माण्डपुराण' पुराण है तथा यह जिससे प्रकट हुआ है वह 'ब्रह्माण्डपुराण' वेद है। इस प्रकार दोनों का अन्तर स्पष्ट है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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