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पुराणनिर्माणाधिकरणम् इत्थमुपक्रम्य लोमहर्षणपुत्रोऽयमुग्रश्रवाः सूतः पञ्चभिः खण्डैः परिच्छिद्य सर्वं पाद्यं श्रावयामास। स चायमुग्रश्रवसः सर्वप्राथमिकपुराणकथनंप्रस्ताव इत्यप्येतल्लेखस्वारस्येनावगम्यते। किन्तु, अस्मिन्नेवोग्रश्रवसः पाझे उत्तरखण्डे पाद्मपुराणस्य लोमहर्षणश्रावितपुराण दशकान्तर्गतत्वं स्मर्य्यते तदेतदुभयवचनविरोधाल्लोमहर्षणप्रातिनिध्येनाप्युग्रश्रवसः पुराणवक्तृत्वं सिध्यतीति सुव्यक्तम्। तथा च विज्ञायते लोमहर्षणंस्तावत्तत्र गत्वा आदिखण्डभूमिखण्ड-ब्रह्मखण्ड-पातालखण्ड-क्रियाखण्डोत्तरखडात्मकैः षड्भिः खण्डैः परिच्छिद्य पाद्यं श्रावयितुं प्रवर्तमानोऽपि केनचित्कारणेन आदिखण्ड-ब्रह्मखण्ड-क्रियाखण्डान्येव श्रावयामास नतु सावशेष श्रावयितुं लब्धावसरो बभूव। अतएवावशिष्टपूरणेन सावशेषं यथास्यात्तथा पागं श्रोतुमीहमानैरपि तैः शौनकादिभिर्मुनिभिरस्य न वागतस्य सूतपुत्रस्योग्रश्रवसो विद्यापरीक्षणार्थमिवादितः पाद्यं श्रावयितु मिव प्रेय॑माण उग्रश्रवा महोत्साहो भूमिखण्डपातालखण्डोत्तरखण्डमात्रकथनौचित्येऽपि जिज्ञासासामान्यात् सम्पूर्णमेव पाद्यमादितः सृष्टिखण्ड-भूमिखण्ड-स्वर्गखण्ड पातालखण्डोत्तरखण्डात्मकैः पञ्चभिःखण्डैः परिच्छिद्य
इस प्रकार प्रारम्भ कर लोमहर्षण के पुत्र उग्रश्रवा सूत ने पाँच खण्डों में सीमित कर समस्त पद्मपुराण सुनाया। उग्रश्रवा का यह सर्वप्रथम पुराण-कथन प्रस्ताव है जो इस लेख के स्वारस्य से ज्ञात होता है। परन्तु उग्रश्रवा के सुनाए इसी पद्य के उत्तरखण्ड में इसे अर्थात् पद्मपुराण को लोमहर्षण के द्वारा श्रावित दश पुराणों के अन्तर्गत भी बताया गया है। इस प्रकार इन दोनों वचनों में विरोध के कारण लोमहर्षण के प्रतिनिधि के रूप में भी उग्रश्रवा का पुराणवक्तृत्व सिद्ध होता है यह सर्वथा स्पष्ट है। लोमहर्षण के वहाँ जाकर आदिखण्ड, भूमिखण्ड, ब्रह्मखण्ड, पातालखण्ड, क्रियाखण्ड और उत्तरखण्डात्मक छः खण्डों के द्वारा विभक्त कर पद्मपुराण को सुनाने के लिए प्रवृत्त होने पर भी किसी कारण से आदिखण्ड, ब्रह्मखण्ड और क्रियाखण्ड का ही श्रवण करवाया गया। शेष भाग सहित सम्पूर्ण पुराण को सुनाने के लिए उन्होंने अवसर प्राप्त नहीं किया। इसलिए अवशिष्ट के द्वारा पूर्ति से (शेष सम्पूर्ण) पद्मपुराण को जैसे-तैसे सुनने के इच्छुक भी उन शौनक आदि मुनियों के द्वारा नवागत सूत पुत्र उग्रश्रवा की विद्या के परीक्षण के लिए ही मानों आदि से पद्मपुराण सुनाने के लिए प्रेरित किये गये हुए की भाँति उग्रश्रवा ने अत्यधिक उत्साह से युक्त होकर भूमिखण्ड, पातालखण्ड और उत्तरखण्ड मात्र का कथन उचित होने पर भी जिज्ञासासामान्य के कारण सम्पूर्ण ही पद्म पुराण को आदि से सृष्टिखण्ड भूमिखण्ड, स्वर्गखण्ड, पातालखण्ड और उत्तरखण्डात्मक पाँच खण्डों के द्वारा विभाजित कर सुनाया। इस प्रकार
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