Book Title: Puran Nirmanadhikaranam
Author(s): Madhusudan Oza, Chailsinh Rathod
Publisher: Jay Narayan Vyas Vishwavidyalay

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Page 87
________________ पुराणनिर्माणाधिकरणम् (५) अन्त्येऽपवर्गसंस्थानं मोक्षशास्त्रानुकीर्तनम्। सर्वमेतत्पुराणेऽस्मिन् कथयिष्यामि वो द्विजाः ॥ ९ ॥ इति । ( १ / ५७-६६ ) तत्र पूर्वनिर्दिष्टमेव विष्णुब्रह्म-संवादसिद्धं पाद्मं ब्रह्मणा मरीचये प्रोक्तम् तेन तु मरीचिना पुनरनाख्यानात्परम्परा न प्रचरिता । किन्तु ब्रह्मणैव पुनरन्यस्मै प्रोक्तम् कस्मै इत्याकांक्षायामुक्तं तेनैवाग्रे— ब्रह्मणा यत्पुरा प्रोक्तं पुलस्त्याय महात्मने । पुलस्त्येनाथ भीष्माय गङ्गाद्वारे प्रभाषितम् ॥१ ॥ २/४७ Jain Education International सूतेनानुक्रमेणेदं पुराणं संप्रकाशितम् । ब्राह्मणेषु पुरा यच्च ब्रह्मणोक्तं सविस्तरम् ॥ २ ॥ २/४८ ८३ तदित्थं ब्रह्मपुलस्त्यसंवादसिद्धे पाद्यनिबन्धे नत्त्वेव पुलस्त्यभीष्मादिसंवादा विषयी - भवन्ति। एवं पुलस्त्यभीष्मसंवांदे पूर्वसंवादोल्लेखाद्वैलक्षण्येऽपि सूतशौनकसंवादादयो (५) अन्तिम में अपवर्ग संस्थानों में मोक्ष शास्त्र कथित है । हे द्विजो ! मैं इस पुराण में आपको सब बतलाऊँगा ॥ ९ ॥ उनमें पूर्व निर्दिष्ट विष्णु ब्रह्मा के संवाद वाला ही पद्मपुराण ब्रह्मा के द्वारा मरीचि को कहा गया उस मरीचि ने पुनः शिष्यों में आख्यान नहीं करने से परम्परा को चालू नहीं रखा किन्तु ब्रह्मा ने ही पुनः अन्य को कहा। किसको कहा इस आकांक्षा में इसी में आगे कहा ब्रह्मा ने जो पहले महात्मा पुलस्त्य के समक्ष प्रवचन किया और पुलस्त्य ने गंगा द्वार (हरिद्वार) में भीष्म को प्रवचन किया ॥ १ ॥ सूत ने अनुक्रम से इस पुराण को सम्पादन से प्रकाशित किया जिसको प्राचीनकाल विस्तारपूर्वक ब्रह्मा ने ब्राह्मणों को कहा अथवा जो प्रारम्भ में ब्राह्मण ग्रन्थों में अनेक ऋषियों के प्रवचन रूप में था, उसे ब्रह्मा ने व्याख्यात्मक विस्तार के साथ कहा ॥ २ ॥ इस प्रकार ब्रह्मा और पुलस्त्य संवाद से सिद्ध पद्म निबन्ध (ग्रन्थ) में पुलस्त्य और भीष्म संवाद विषय सम्भव नहीं हैं। इसी भाँति पुलस्त्य और भीष्म के संवाद में पूर्व संवाद के उल्लेख से विलक्षणता होने पर भी सूत और शौनक के संवाद आदि का For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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