Book Title: Puran Nirmanadhikaranam
Author(s): Madhusudan Oza, Chailsinh Rathod
Publisher: Jay Narayan Vyas Vishwavidyalay

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Page 107
________________ पुराणनिर्माणाधिकरणम् १०३ भिन्नाभिन्ना एव मुनयः। यथा विष्णुपुराणस्य भगवान् पराशरः। पश्चात्तेषां सर्वेषामेव कथानकानां: लिपिकर्ता तु लोमहर्षणपुत्रः पुराणवृत्तिः सूत उग्रश्रवा एक एवेति पुराणलेखस्वारस्येन स्पष्टं प्रतिभाति। किन्तु यान्येतानि वेदव्यासप्रणीत-पुराणसंहिता-मूलकसंहिता-चतुष्टयीमूलकानि ब्राह्मादीन्यष्टादशपुराणानि तेषां वेदव्यास प्रमाण्यादेव प्रामाण्यम्। आप्तप्रामाण्याद्धि तद्वचन प्रामाण्यमिति न्यायादतो नैतेष्वष्टादशसु तत्तत्कर्तृणां तत्तत्कर्तृत्वोपचारः । येषां पुनरन्येषां वेदव्यासप्रणीतपुराणसंहितामनवलम्ब्यैव स्वस्वतपोबलदृष्टकथाप्रस्तावकतत्तन्मुनिप्रामाण्यदेव प्रामाण्यं तान्युपपुराणानि भवन्ति। अत एव नारदपुराणद्वयमध्ये नारदप्रवर्तकत्वाविशेषेऽपि यत्र वेदव्यास प्रामाण्यात्प्रामाण्यं तदष्टादशपुराणान्तर्गतम्। यत्र तु नारद प्रामाण्यादेव प्रामाण्यं तदुपपुराणमिति वदन्ति। वेदव्यासस्य चेश्वरावतारत्वाभिप्रायेणोपपुराणापेक्षया पुराणेषु श्रद्धातिशयो भवति भारतवर्षीया-णाम्। तत्र यद्यपि वेदव्यासप्रणीतपुराणसंहितायां वेदोद्धृतायाम् आख्यानोपाख्यानगाथाकल्पशुद्ध्यात्मकानि चत्वार्येव लक्षणानि तथापि तान्यन्यथावर्णकेन जैसे विष्णु पुराण के भगवान् पराशर हैं। पश्चात् उन सभी कथानकों अर्थात् आख्यानों के लिपिकर्ता तो लोमहर्षण के पुत्र, पुराणवृत्ति वाले सूत अकेले उग्रश्रवा है। ऐसा पुराणों के लेख के स्वारस्य से स्पष्ट प्रतीत होता है। किन्तु जो भी ये वेद व्यास रचित पुराण संहिता मूल वाली चार संहिताओं के मूल वाले ब्राह्मादि अठारह पुराण हैं उनका वेद व्यास के प्रामाण्य से ही प्रामाण्य है। आप्त प्रामाण्य से ही शास्त्रों के वचन का प्रामाण्य होता है इस न्याय से इन अठारह पुराणों में तत् तत् कर्ताओं के तत् तत् पुराण के कर्तृत्व का उपचार नहीं किया जाता है। इनमें भिन्न अन्यों का जो वेद व्यास द्वारा प्रणीत पुराण संहिता का सहारा लिए बिना ही अपने-अपने तपोबल से दृष्ट कथाओं के प्रस्तावक मुनियों के रहे हैं उन-उन मुनियों के प्रामाण्य से ही प्रामाण्य है, वे सब उप पुराण हैं। इसीलिए दो नारद पुराणों के बीच में नारद का प्रवर्तकत्व समान रूप से होने पर भी जहाँ वेद व्यास के प्रामाण्य से प्रामाण्य होता है वह अठारह पुराणों के अन्तर्गत आता है जहाँ नारद के प्रामाण्य से ही प्रामाण्य है वह उपपुराण के अन्तर्गत आता है। वेद व्यास के ईश्वर का अवतार होने के भाव से उपपुराणों की अपेक्षा पुराणों में भारतवर्षीय आर्यों की श्रद्धा अधिक होती है। उनमें यद्यपि वेद व्यास द्वारा रचित वेदों के मन्त्रों से उद्धृत पुराण संहिता में आख्यान, उपाख्यान, गाथा और कल्पशुद्धि ये चार ही लक्षण हैं तथापि उनका Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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