Book Title: Puran Nirmanadhikaranam
Author(s): Madhusudan Oza, Chailsinh Rathod
Publisher: Jay Narayan Vyas Vishwavidyalay

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Page 110
________________ अथ प्रकारान्तरेण पुराणावतारः ' २ ३ कृष्णद्वैपायनः पुरा एकामेव पुराणसंहिताम् “आख्यानोपाख्यानगाथा-कल्पशुद्धिरूप-विषय-चतुष्टयोपेतामनिर्द्दिष्टनाम्नीमकरोत् — लोमहर्षणाय सूतवंश्याय वेदाधिकाररहिताय स्वशिष्याय पाठयामास च । १ ततो लोमहर्षणोऽपि त्रय्यारुण्यादिभ्यः षड्भ्यः शिष्येभ्यः पाठयामास । अपरामेकां लोमहर्षणिकानाम्नीं संहितां चकार च ॥ ततस्तेषुषट्सु शिष्येषु मध्ये त्रयः शिष्याः शांशपायनः सावर्णिः काश्यपा अपि प्रत्येकमेकैकां संहितामकुर्वन् । अपाठयंश्च हि स्वशिष्येभ्यः । २ ३ पुराणों के उद्भव का कथन अन्य प्रकार से प्राचीनकाल में कृष्णद्वैपयान ने एक ही पुराणसंहिता, आख्यान, उपाख्यान, गाथा और कल्पशुद्धि रूप चार विषयों से युक्त, नामकरण के बिना बनायी और वेदाधिकार से रहित, सूतवंशज लोमहर्षण नामक अपने शिष्य को उसे पढ़ाया। उसके पश्चात् लोमहर्षण ने भी त्रयारुणि आदि छः शिष्यों को पढ़ाया और एक अन्य लौमहर्षणिका नामक संहिता का निर्माण किया। उसके पश्चात् उन छः शिष्यों के बीच शांशपायन, सावर्णि, काश्यप इन तीन शिष्यों ने भी प्रत्येक ने एक-एक संहिता का निर्माण किया और अपने शिष्यों को पढ़ाया। १. श्रीमद्भागवत प्रसिद्धा प्रकारान्तरपुराणावतरणमिमनिद्भिरिवन्यवशि श्रीमद्भिरोझा महोदयैः, भागवतकृतम् प्रतिपादनमिदं सर्वथैव दोषपूर्णम् । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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