Book Title: Puran Nirmanadhikaranam
Author(s): Madhusudan Oza, Chailsinh Rathod
Publisher: Jay Narayan Vyas Vishwavidyalay

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Page 109
________________ पुराणनिर्माणाधिकरणम् १०५ अत्र शैवस्य वायव्येन सह पुराणमतभेदात् पुराणत्वोपपुराणत्वाभ्यां विकल्पः । एतान्येव स्मरणार्थमन्यथा क्रमकल्पितानि । मद्वयं भद्वयं चैव ब्रत्रयं वचतुष्टम् । अनापकूस्कलिङ्गानि पुराणानि प्रचक्षते ॥ इति । मद्वयं भद्वयं ब्रत्रयं वचतुष्टयम् अ. ना. प. कू. स्क. १५, १३, ७, ५, १, ३, ८, ६, २, १६ ९ १० १२ १८ १४ ४ (मतभेदेन) १. Jain Education International कूर्म्मपुराणे तु भविष्यस्य षष्ठत्वं वायुपुराणस्य चाष्टादशत्वमुक्तं, ब्रह्माण्डपुराणंतु तत्र नोल्लिखितम् ॥ ॥ इति संक्षिप्तपुराणावतारः ॥ यहाँ शैव का वायव्य के साथ पुराण विषयक मतभेद होने के कारण पुराण और उपपुराण के रूप में विकल्प है। इन्हीं पुराणों के स्मरण के लिए अन्य प्रकार से यह क्रम कल्पित है— : मकारादि दो नाम (मत्स्य, मार्कण्डेय), भकारादि दो नाम ( २ भागवत, १ भविष्योत्तर) ब्र आदि तीन नाम (ब्रह्म, ब्रह्मवैवर्त, ब्रह्माण्ड ) वकारादि चार नाम (४ विष्णु, ३ वायु, २ वामन, १ वराह) और अ (अग्नि) ना (नारद), प (पद्म) कू (कूर्म) स्क (स्कन्द) लि (लिङ्ग) ग (गरुड) इस प्रकार अठारह पुराण कहे गये हैं । ( देवी भागवत १ / ३ /२) मद्वय भद्वय ब्रत्रय वचतुष्टय ७, ५, १, ३, -१६ ९ .१० १२ १८ १४ अ. ८, लिं. ना. प. कू. स्क. ६, २, १५, १३, ११, ग. । १७ For Personal & Private Use Only ४ ( मतभेद ) कूर्म पुराण में तो भविष्य को छठा तथा वायु पुराण को अठारहवाँ कहा गया परन्तु ब्रह्माण्ड पुराण में तो इसका उल्लेख नहीं है। ॥ इस प्रकार संक्षिप्त पुराणों का उद्भव कथन पूर्ण ॥ देवीभागवते - उत्तरार्धम् अ-ना-प-लिंग- कू-स्कानि पुराणानि पृथक् पृथक् । १-३.२ लिं. ग. । ११, १७ www.jainelibrary.org

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