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पुराणनिर्माणाधिकरणम् विभज्य ब्राह्मादिपुराणेषु तत्तन्मुनिभिः पञ्चधार्थाः प्रतिपादिता इति तानि सर्वाण्यपि पञ्चलक्षणान्यभूवन्। तद्यथा
“सर्गश्च प्रतिसर्गश्च वंशोमन्वन्तराणि च।
वंश्यानुचरितं चैव पुराणं पञ्चलक्षणम्॥" तानि चैतानि पञ्चलक्षणानि पुराणसंहितासमुद्धृतानि पुराणान्यष्टादश भवन्तीत्यत्र न केषाश्चिदपि विप्रतिपत्तिः। तथा चोक्तं पराशरादिभिः
"अष्टादशपुराणानि पुराणज्ञाः प्रचक्षते इति॥” (वि.पु. ३/६/२०)
तानि यथा विष्णुपुराणे१ ब्राह्मम्।
२ पाद्यम्। . ३ वैष्णवम्। ४ शैवम् (वायव्यम्)। ५ भागवतम्।
६ नारदीयम्। ७ मार्कण्डेयम्।
आग्नेयम्।
९ भविष्यम्। १० ब्रह्मवैवर्त्तम्। ११ लैङ्गम्।
.१२. वाराहम्। १३ स्कान्दम्। १४ वामनम्।
१५ . कौमम्। १६ मात्स्यम्। १७ गारुडम्।
१८ ब्रह्माण्डम्।
(३/६/२१-२३) अन्यथा विभाजन कर ब्राह्म आदि पुराणों में उन-उन मुनियों के द्वारा पाँच प्रकार के अर्थ प्रतिपादित किये गए हैं इस प्रकार वे सभी (पुराण) पञ्चलक्षण वाले हो गए जो ये हैं
“सर्ग, प्रतिसर्ग, वंश, मन्वन्तर और वंश्यानुचरित इस प्रकार पुराण पञ्चलक्षण है।" (देवी भागवत १/२/१८)
पुराण संहिताओं से समुद्धृत इन पाँच लक्षणों वाले पुराण अठारह हैं इस विषय में किसी की विप्रतिपति नहीं है जैसाकि पराशर आदि के द्वारा कहा गया है
"पुराणों के ज्ञाता अठारह पुराण कहते हैं" .
वे विष्णु पुराण में इस प्रकार परिगणित हैं१ ब्राह्म पुराण। २ पाद्म पुराण। ३ वैष्णव पुराण। ४ शैव पुराण (वायव्यम्)। ५ भागवत पुराण। ६ नारदीय पुराण। ७ मार्कण्डेय पुराण। ८ आग्नेय पुराण। ९ भविष्यपुराण । १० ब्रह्मवैवर्त पुराण। ११ लैङ्ग पुराण।
१२ वाराह पुराण। १३ स्कान्द पुराण। १४ वामन पुराण। १५ कूर्म पुराण। १६ मात्स्य पुराण। १७ गारुड पुराण। १८ ब्रह्माण्ड पुराण।
३/९/२१-२३
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