________________
अथ पुराणावतारः
आख्यानैश्चाप्युपाख्यानैर्गाथाभिः कल्पशुद्धिभिः ।
पुराणसंहितां चक्रे पुराणार्थविशारदः ।।१।। वि.पु. ३/६/१५ एतामेकां पुराणसंहितां कृत्वा भगवान् कृष्णद्वैपायनः सूताय निजशिष्याय रोमहर्षणाय ग्राहयामास। तस्य पुनः सूतस्यापरे षट्शिष्या अभवन् । सुमतिः, अग्निवर्चाः, मित्रयुः,
३
४
५
६
शांशपायनः, अकृतव्रणः, सावर्णिः इतिभेदात् । अत्राकृतव्रणः काश्यपनाम्नापिव्यवहियते । तत्रैतेषु षट्सु शिष्येषु काश्यपः सावर्णिः शांशपायन इत्येते त्रयः संहिताकर्त्तारोऽभूवन् । तिसृणां चैतासां काश्यपसंहिता - सावर्णिसंहिता- शांशपायनसंहितानां मूलभूता रौमहर्षणिका सूतसंहिताऽऽसीत्। तदेवं संहिताचतुष्टयी सिद्धा ।
काश्यपः संहिताकर्त्ता सावर्णिः शांशपायनः ।
रोमहर्षणिका चान्या तिसृणां मूलसंहिता ।। १ ।। ( वि. पु. ३ / ६ / १८)
अब पुराण का अवतरण
पुराणतत्त्व के रहस्यविद् महर्षि वेद व्यास ने आख्यानों, उपाख्यानों, गाथाओं और पशुद्धिओं के द्वारा पुराण संहिता का निर्माण किया ॥ १ ॥ (विष्णुपुराण ३/६/१५)
भगवान् कृष्णद्वैपान ने एक पुराण संहिता का निर्माण कर अपने शिष्य सूत रोमहर्षण को ग्रहण करवाया अर्थात् पढ़ाया। और फिर उस सूत के अन्य छः शिष्य हुए — सुमति, अग्निवर्चा, मित्रयु, शांशपायन, अकृतव्रण और सावर्णि नाम के । यहाँ अकृतव्रण काश्यप नाम से भी व्यवहृत किया गया है। इन छः शिष्यों में काश्यप, सावर्णि और शांशपायन ये तीन पुराणसंहिता के कर्त्ता हुए। काश्यप संहिता, सावर्णि संहिता तथा शांशप इन तीनों संहिताओं की मूलभूत 'रोमहर्षणिका सूत संहिता' थी। इस प्रकार चार संहिताएँ सिद्ध होती हैं।
काश्यप, सावर्णि और शांशपायन ये पुराण संहिता के कर्त्ता हुए और इन तीनों की मूल संहिता रोमहर्षणिका एक और अन्य थी ॥ १ ॥
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org