Book Title: Puran Nirmanadhikaranam
Author(s): Madhusudan Oza, Chailsinh Rathod
Publisher: Jay Narayan Vyas Vishwavidyalay

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Page 104
________________ १०० पुराणनिर्माणाधिकरणम् चतुरः शिष्यान् पाठयामास । ते यथा — मोदः, ब्रह्मवलिः, शौल्कायनिः, पिप्पलादः इति॥ पथ्यस्यापि त्रयः शिष्याः संहिताकर्त्तारः । जाजलिः, कुमुदः, शौनकश्चेति । अथ शौनकः पुनरेतां द्विधा कृत्वा बभ्रवे सैन्धवायनाय च प्रादात् । तेन शौनकसंहिताध्येतारो द्विधा विभक्ता अभूवन्। सैन्धवा मुञ्जकेशाश्च (मुञ्जकेश इति बभ्रोरेव नामान्तरम् ' ) तत्रैतासु आथर्वणिकसंहितासु पञ्चैव संहिताविकल्पाः श्रेष्ठा भवन्ति नक्षत्रकल्पः, वेदकल्पः संहिताकल्पः, आङ्गिरसंकल्पः, शान्तिकल्पः इति भेदात् । १ तत्र नक्षत्रकल्पे नक्षत्रादिपूजाविधयः । २ वेदकल्पे वैतानिक ब्रह्मत्वादिविधिः । संहिताकल्पे संहिताविधिः । ३ ४ आङ्गिरसकल्पेऽभिचारादिविधयः । शान्तिकल्पे अश्वगजाद्यष्टादशमहाशान्त्यादिविधिः । ॥ इति वेदशाखोत्पत्तिक्रमः ॥ अध्यापनपूर्वक ग्रहण करवाया। उनमें देवदर्श ने अपनी संहिता को चार भागों में विभक् कर चार शिष्यों को पढ़ाया इस प्रकार हैं—मोद, ब्रह्मवलि, शौल्कायनि और पिप्पलाद । पथ्य के भी तीन शिष्य जाजलि, कुमुद और शौनक थे जो संहिताओं के कर्ता हुए। शौनक ने पुनः इस संहिता को दो भागों में विभक्त कर बभ्रु और सैन्धवायन को दिया । इस कारण से शौनक संहिता के अध्ययन करने वाले दो भागों में विभक्त हो गए— सैन्धव और मुकेश ( मुञ्जकेश बभ्रु का ही अन्य नाम है) उन अथर्ववेद सम्बन्धी संहिताओं में वहाँ पाँच संहिता विकल्प ही श्रेष्ठ हैं- -नक्षत्र कल्प, वेदकल्प, संहिताकल्प, अङ्गिरसकल्प और शान्तिकल्प रूपों से १. उनमें नक्षत्रकल्प में नक्षत्रादि पूजा की विधियाँ हैं । २. ३. ४. ५. १. ५ वेदकल्प में यज्ञवेदी सम्बन्धी और ब्रह्मा सम्बन्धी विधियाँ हैं । संहिताकल्प में संहिताविधि है । अङ्गिरसकल्प में अभिचार आदि की विधियाँ हैं । शान्तिकल्प में अश्व गजादि अठारह महाशन्ति आदि से सम्बन्धी विधियाँ हैं । ॥ यह वेद की शाखाओं की उत्पत्ति का क्रम पूर्ण है । वाय सैन्धवायन शिष्यो मुञ्जकेशः इति, तथाहि सैन्धवो मुञ्जकेशाय भिन्ना सा च द्विधा पुनः । पूर्वार्ध ६१ / ५४ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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