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पुराणनिर्माणाधिकरणम्
२ गार्ग्यशाखा।
३ कथाजपशाखा। अथ यजुर्वेद-श्रावकस्य वैशम्पायनस्य बहवः शिष्या अभूवन्। तत्र सर्वप्रधानो ब्रह्मरातपुत्रो भगवान् याज्ञवल्क्य आसीत्। एकदा केनापि कारणेन महामेरौ ऋषीणां समाजोऽभूत तत्रोपस्थानाय मुनिगणैः समयः कृतः
___ "ऋषिर्योऽद्य महामेरौ समाजे नागमिष्यति।
- तस्य वै सप्तरात्रात्तु ब्रह्महत्या भविष्यति॥"
तमेवंकृतं समयं केनापि कारणेन वैशम्पायन एवैको व्यतिक्रान्तवान्। तेनास्य ब्रह्मवधशापादचिरादेवासौ पदास्पृष्टमेव स्वस्रीयं बालकमघातयत्। अतस्तत्प्रायश्चित्तार्थं—“मत्कृते ब्रह्महत्यापहं व्रतं चरध्व" मिति सर्वान् शिष्यानाज्ञापयत्-..
“अथाह याज्ञवल्क्यस्तं किमेभिर्भगवन् द्विजैः। क्लेशितैरल्पतेजोभिश्चरिष्येऽहमिदं व्रतम्॥१॥"
२. गार्ग्य शाखा ३. कथाजप शाखा
(ऋग्वेद शाखाएँ पूर्ण) यजुर्वेद के श्रावक वैशम्पायन के बहुत से शिष्य हुए। उनमें सर्वप्रधान ब्रह्मरात पुत्र भगवान् याज्ञवल्क्य थे। एक बार किसी कारण से महामेरु पर ऋषियों की सभा हुई। वहाँ उपस्थित होने के लिए मुनिगणों ने सिद्धान्त अर्थात् निर्णय कर लिया था
जो ऋषि आज महामेरु पर्वत पर सभा में नहीं आयेगा उससे सात रात्रि में ब्रह्म हत्या हो जायेगी।
इस प्रकार बनाये गये नियम का किसी कारण से एक मात्र वैशम्पायन ने ही व्यतिक्रमण किया इस कारण से उसको लगे ब्रह्म वध शाप के कारण शीघ्र ही उसने (प्रमाद वश) पैरों से छू लेने वाले बालक भागिनेय (भाणेज) को मार दिया इसलिए प्रायश्चित के लिए "मेरे लिए ब्रह्महत्या का निवारण करने वाले व्रत का आचरण करो" ऐसी सभी शिष्यों को आज्ञा दी
तत्पश्चात् वैशम्पायन ने याज्ञवल्क्य को कहा भगवन् अल्प तेज वाले इन द्विजों को कष्ट देने से क्या लाभ है ? मैं इस व्रत का आचरण करूँगा
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