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पुराणनिर्माणाधिकरणम्
अथ वेदमित्रः शाकल्य इन्द्रप्रमतिशाखामधीत्य संहितां पञ्चधा विभज्य पञ्चशिष्येभ्यः प्रादात्। ते च—मुद्गलः, गोखलः, वात्स्यः, शालीयः, शिशिरः । अथ तृतीयः शाकपूणिस्तु तिस्रः संहिता विभज्य चतुर्थमेकं निरुक्तमप्यकरोत् । तदेवमिन्द्रप्रमतिशाखा आदौ त्रिधा
१ माण्डूकेयसंहिता
१
२ शाकल्यसंहिता ५ ३ शाकपूणिसंहिता
३
पुनरत्र माण्डूकेयशाखा एका । शाकल्यशाखा तु पञ्चधाऽभूत्। यथा—
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इसके पश्चात् वेदमित्र शाकल्य ने इन्द्र प्रमति की शाखा का अध्ययन कर उस संहिता को पाँच भागों में विभक्त कर पांच शिष्यों को दिया, वे इस प्रकार हैं—मुद्गल, गोखल, वात्स्य, शालीय और शिशिर । तीसरे शिष्य शाकपूणि ने तीन संहिताओं का विभाजन कर चौथे एक निरुक्त की भी रचना की । इस प्रकार इन्द्र प्रमति की शाखा आदि तीन भागों में थी इस प्रकार शाखाओं में बंटी
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१ मुद्गलशाखा ।
२ गोखलशाखा ।
३
वात्स्यशाखा ।
४
शालीयशाखा ।
५ शिशिरशाखा ।
(१) माण्डूकेय संहिता - १ ( केवल एक, इसने नये शिष्य नहीं बनाये )
(२) शाकल्य संहिता – ५ (पाँच शिष्य)
(३) शाकपूणि संहिता - ३ ( तीन शिष्य)
इन्द्रप्रमति शिष्यों में माण्डूकेय की शाखा एक ही रही । शाकल्य शाखा पाँच प्रकार की हो गयी जैसे—
१.
२.
३.
४.
५.
मुद्गल शाखा
गोखल शाखा
वात्स्य शाखा
शालीय शाखा
शिशिर शाखा
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