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पुराणनिर्माणाधिकरणम् अथैवं विभज्य चतुरोभागान् कृष्णद्वैपायनश्चतुर एव शिष्यानेकैकं भागमग्राहयत्। तथैतस्मादेव वेदात्पुराणेतिहासभागं पृथक् संगृह्य पञ्चमवेदनाम्ना शिष्यमेकमग्राहयत्। तथाहि
पैलम् - ऋग्वेदश्रावकं चकार वैशम्पायनम् - यजुर्वेदश्रावकं चकार जैमिनिम् ___- सामवेदश्रावकं चकार सुमन्तुम् - अथर्ववेदश्रावकं चकार
रोमहर्षणन्तु - इतिहासपुराणयोश्चकार ततः पैल ऋग्वेदं द्वाभ्यां संहिताभ्यां विभज्य शिष्यद्वयमग्राहयत्
१ संहिता इन्द्रप्रमतये ३
२ संहिता वाष्कलाय ७. तत्र इन्द्रप्रमतिसंहिता त्रिभिरधीता—इन्द्रप्रमतिपुत्रेण माण्डूकेयेन शाकल्येन वेदमित्रेण, शाकपूणिना च॥
कृष्ण द्वैपायन ने वेद को इस प्रकार चार भागों में विभक्त कर चारों ही शिष्यों को एक-एक भाग का ग्रहण करवाया। उस प्रकार इसी वेद से पुराणेतिहास भाग का पृथक् संग्रह करके पञ्चम वेद के नाम से एक शिष्य को ग्रहण करा दिया
पैल को—ऋग्वेद सुनने वाला शिष्य बनाया वैशम्पायन को-यजुर्वेद सुनने वाला शिष्य बनाया जैमिनि को-सामवेद सुनने वाला शिष्य बनाया सुमन्तु को–अथर्ववेद सुनने वाला शिष्य बनाया रोमहर्षण को—इतिहास पुराण सुनने वाला शिष्य बनाया
तत्पश्चात् पैल ने ऋग्वेद को दो संहिताओं में विभक्त कर दो शिष्यों को ग्रहण करवा दिया
एक संहिता इन्द्रप्रमति के लिए दी, दूसरी संहिता वाष्कल के लिए। उनमें से इन्द्रप्रमति की संहिता का तीन ने अध्ययन किया—इन्द्र प्रमति के पुत्र माण्डूकेय ने, शाकल्य वेदमित्र ने, तथा शाकपूणि ने।
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