________________
पुराणनिर्माणाधिकरणम्
पाद्यं तत् पञ्चपञ्चाशत्सहस्राणीह पठ्यते।
पञ्चभिः पर्वभिः प्रोक्तं संक्षेपाद् व्यासकारितात् ॥३॥ (१) पौष्करं प्रथमं पर्व यत्रोत्पन्नः स्वयं विराट्। (२) द्वितीयं तीर्थपर्वस्यात् सर्वग्रहगाश्रयम् ॥४॥ (३) तृतीयपर्वग्रहणा राजानो भूरिदक्षिणाः। (४) वंशानुचरितं चैव चतुर्थे परिकीर्तितम् ॥५॥ (५) पञ्चमे मोक्षतत्त्वं च सर्वतत्त्वं निगद्यते। (१) पौष्करे नवधासृष्टिः सर्वेषां ब्रह्मकारिता॥६॥
देवतानां मुनीनां च पितृसर्गस्तथा परः। (२) द्वितीये पर्वताश्चैव द्वीपाः सप्त ससागराः॥७॥ (३) तृतीये रुद्रसर्गस्तु दक्षशापस्तथैव च। (४) चतुर्थे संभवो राज्ञां सर्ववंशानुकीर्तनम् ॥८॥
सब प्राणियों का आश्रय वह पद्म ऐसा कहा जाता है। पद्म में पचपन हजार श्लोक हैं जो व्यास अर्थात् विस्तार युक्त कथन के संक्षिप्त रूप हैं। पाँच पर्यों में कहा गया है॥३॥
(१) पौष्कर प्रथम पर्व है यहाँ स्वयं विराट उत्पन्न हुआ। (२) द्वितीय तीर्थ पर्व है सब ग्रह समूहों का आश्रय है॥४॥ (३) तृतीय पर्व में जिनका ग्रहण है वे प्रचुर दक्षिणा वाले राजा हैं। (४) चतुर्थ पर्व में वंशानुचरित कहा गया है॥५॥ (५) पञ्चम पर्व में मोक्षतत्त्व कहा गया है जो सभी तत्त्वों में महान् है।
(१) पौष्कर में नव प्रकार की ब्रह्म द्वारा की गयी तथा करायी गयी सृष्टि बतलायी गयी है॥६॥ देवताओं, मुनियों तथा पितृ-सर्ग का भी वर्णन है।
(२) द्वितीय में पर्वत, सागर सहित सात द्वीप वर्णित हैं। (३) तृतीय में रुद्र सर्ग है तथा दक्ष के शाप का वर्णन है। (४) चतुर्थ में सब राजाओं की उत्पत्ति प्रकरण में वंशों का अनुकीर्तन है।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org