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पुराणनिर्माणाधिकरणम्
नोल्लिख्यन्ते। अथैतदेव पायलोमहर्षणाख्येन सूतेन मत्पित्रा पूर्वं सविस्तरं प्रकाशितम्। तदेव पाद्यं वेदव्यासेन पूर्वं पञ्चभिः पर्वभिरुपनिबद्धमासीत्। तेषु च पञ्चसु पर्वसु इत्थमित्थं विषया निर्दिष्टाः सन्तिः। तानेव सर्वान् विषयान् निबन्धांश्चालोच्य मयेदानीं पञ्चभिः खण्डैः परिच्छिद्य पञ्चपञ्चाशत्सहस्त्रश्लोकैर्युष्मभ्यमाख्यायते इत्यर्थः। ____ तदित्थमुग्रश्रवसः पाद्मपुराणवचनेन स्पष्टमनेकेषां पद्मपुराणानां विभिन्नाकारप्रकाराणां सत्ता सिध्यति। तथैवान्येषामपि ब्राह्मादिपुराणानामनेकानेकनिबन्धाः काले काले विभिन्नकर्तृकाः सम्भाव्यन्ते तथा हि—ब्राह्मं पाद्यं वैष्णवं चेत्याद्यौग्रश्रवसः पाद्योत्तरखण्डवचनेन ब्राह्मपाद्मवैष्णवानां नारदीय-भविष्यब्रह्मवैवर्त्तवाराहाणां वामनकौर्ममात्स्यानामाग्नेयार्द्धस्य च द्वापरान्ते शौनकादियज्ञारम्भात् प्रागेव लोमहर्षणप्रोक्तत्वं लभ्यते। इतरेषांतु सार्द्धसप्तपुराणानां वायवीय-भागवत-मार्कण्डेयानां लैङ्गस्कान्दगारुडब्रह्माण्डानामाग्नेयोत्तरमाहात्म्यस्य च कल्यब्द सहस्रपूतौं शौनकादियज्ञानवसानकाले लोमहर्षणपुत्रोग्रश्रवः प्रोक्तत्वमवसीयते। अथापीदानीमुपलभ्य मानेषु पुराणग्रन्थेषु औग्रश्रवसत्वेनाभिमतानामपि सप्तानां मध्यात्केषांउल्लेख सम्भव नहीं है। इसी पद्म पुराण को मेरे पिता लोमहर्षण सूत ने पहले विस्तारपूर्वक प्रकाशित किया जो पद्मपुराण वेद व्यास के द्वारा पहले ही पाँच पर्यों में उपनिबद्ध किया गया था। उन पाँच पर्यों में इस इस प्रकार के जो विषय निर्दिष्ट है उन्हीं सारे विषयों की
और ग्रन्थों को आलोचना कर कर मेरे द्वारा इस समय पाँच खण्डों में सीमित कर पचपन हजार श्लोकों के द्वारा आप लोगों के लिए कहा जा रहा है।
__ इस प्रकार उग्रश्रवा के पद्मपुराण के वचन से विभिन्न आकार प्रकार वाले अनेक पद्मपुराण ग्रन्थों की स्पष्ट सता सिद्ध होती है। इसी प्रकार अन्य ब्राह्म आदि पुराणों के भी विभिन्न कर्तृक अनेकानेक निबन्ध समय-समय पर सम्भावित हैं। जैसे ब्राह्म पाद्म और वैष्णव इत्यादि। उग्रश्रवा के पायोत्तर खण्ड के वचन से ब्राह्म, पाद्य, वैष्णव, नारदीय, भविष्य, ब्रह्मवैवर्त, वाराह, वामन, कौर्म और मात्स्य पुराणों के तथा आग्नेय अर्ध के द्वापर के अन्त में शौनक आदि के यज्ञ से पहले ही लोमहर्षण द्वारा प्रवचन करने का पता चलता है। अन्य वायवीय, भागवत, मार्कण्डेय लैङ्ग, स्कान्द, गारुड़, ब्रह्माण्ड नाम के पूरे पुराणों का और आग्नेयोत्तर माहात्म्य रूप साढ़े सात पुराणों का कलियुग के हजार वर्ष पूर्ण होने पर शौनक आदि के यज्ञ के अवसानकाल में लोमहर्षण के पुत्र उग्रश्रवा के प्रवचन का ज्ञान होता है। तथापि इस समय उपलब्ध होने वाले पुराण ग्रन्थों में उग्रश्रवा
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