Book Title: Puran Nirmanadhikaranam
Author(s): Madhusudan Oza, Chailsinh Rathod
Publisher: Jay Narayan Vyas Vishwavidyalay

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Page 92
________________ पुराणनिर्माणाधिकरणम् कल्पानवलम्ब्य कतिपय - पुराणनिबन्धा अन्यैरन्यैर्मुनिभिः संकलितास्तेषामपि तत्तत्कल्पानुगमानुरोधेन पूर्वनिर्दिष्टाष्टादशपुराणान्तःपातित्वं स्मरन्ति॥ ते यथा देवीभागवते (१।३)॥ तथैवोपपुराणानि शृण्वन्तु ऋषिसत्तमाः । सनत्कुमारं प्रथमं नारसिंहं ततः परम्॥१॥ ८८ ३ ४ नारदीयं शिवं चैव दौर्वाससमनुत्तमम् । कापिले मानवं चैव तथा चौशनसं स्मृतम् ॥२॥ १० वारुर्ण कालिकाख्यं च साम्बं नन्दिकृतं शुभम् । १३ १४ सौर पाराशरं प्रोक्तमादित्यं चातिविस्तरम् ॥ ३ ॥ १६ १८ माहेश्वरं भागवतं वासिष्ठं च सविस्तरम् । एतान्युपपुराणानि कथितानि महात्मभिः ॥४ ॥ (१३-१६) निबन्ध अन्य मुनियों के द्वारा भी संकलित किये गए, उनके भी तत - तत् कल्पों के अनुरोध से पूर्व निर्दिष्ट अठारह पुराणों में ही अन्तर्भाव मानते हैं । जैसे देवीभागवत में कहा है( प्रथम स्कन्ध का तृतीय अध्याय) Jain Education International श्रेष्ठ ऋषियों उपपुराणों का श्रवण कीजिए । सनत्कुमार प्रथम है नारसिंह उसके पश्चात् है॥१॥ उसके पश्चात् नारदीय, शिव, दौर्वास, कपिल, मानव और औशनस कहे गये हैं ॥२॥ वारुण, कालिका, नन्दिकृत साम्ब, सौर, पराशर प्रोक्तं अत्यन्त विस्तृत आदित्य माहेश्वर भागवत और विस्तार युक्त वासिष्ठ, महात्माओं के द्वारा ये उपपुराण कहे गये हैं॥३-४॥ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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