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अथ वेदपुराणादि-शास्त्रावतारे . वेदशाखोत्पत्तिक्रमः आह मैत्रेयं प्रति भगवान् पराशरः
आद्यो वेदश्चतुःपादः शतसाहस्रसंमितः।
ततो दशगुणः कृत्स्नो यज्ञोऽयं सर्वकामधुक्॥ (वि.पु. ३.४.१) अग्निहोत्रं, दर्शपूर्णमासः चातुर्मास्य, पशुः, सोमः इति पञ्चविध एव प्रकृति विकृतिद्वैविध्याद्दशविध इत्येके। गृह्योक्तैः पञ्चयज्ञैः सह दशविधत्वमित्यन्ये।
तमेवमेकं चतुःपादं वेदं कृष्णद्वैपायनो नाम पराशर-पुत्रश्चतुर्द्धा व्यभजत्। ऋग्वेदः, यजुर्वेदः, सामवेदः, अथर्ववेदश्चेति।
वेद पुराणादि शास्त्र के अवतार में
वेदशाखाओं की उत्पत्ति का क्रम मैत्रेय के प्रति भगवान् पाराशर ने कहा
वेद का आद्यरूप चतुष्पाद तथा एक लाख ऋचाओं का है। उससे दस गुना अधिक यह सम्पूर्ण यज्ञ-वितान है जो सभी कामनाओं का पूरक है।
अग्निहोत्र, दर्शपूर्णमास, चातुर्मास, पशु तथा सोम यह पाँच प्रकार की यज्ञ विधा प्रकृति तथा विकृति के दो प्रकारों के भेद से दस प्रकार की हो जाती है, ऐसा कतिपय विद्वान् मानते हैं। अन्य यह मानते हैं कि गृह्य सूत्र में कथित पांच यज्ञों के साथ ये अग्निहोत्रादि पाँच मिलकर दस प्रकार के हो जाते हैं। उस एक ही चार पादों वाले यज्ञ वेद को पराशर पुत्र कृष्णद्वैपायन ने चार भागों में विभक्त किया-ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद के रूपों में।
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वस्तुतः एक एव वेदश्चतुष्पादो विद्यते यज्ञकर्मव्यापृतानामृत्विजांन कर्माणि होत्रमाध्वर्यवमौद्गात्रं ब्रह्मत्वं सम्पादयितुम् । एतादृशा विभागा आदिकालादेवेति विचारमादाय वाक्यमिदं कोष्ठके न्यधायि ग्रन्थकत्रैव। पादानां नामानि तदद्यः ऋग्वेद प्रभृप्त नाम'चतुष्टयेन दत्तानि।
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