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पुराणनिर्माणाधिकरणम्
व्यासशिष्यः पुराणज्ञो लोमहर्षणसंज्ञकः। तं पप्रच्छुर्महाभागाः शौनकाद्यास्तपोधनाः ॥३॥ पौराणिक महाबुद्धे रोमहर्षण सुव्रत। त्वत्तः श्रुता महापुण्या:पुरा पौराणिकी: कथाः॥४॥ सांप्रतं च प्रवृत्ताः स्म कथायां सक्षणा हरेः । पुनः पुराणमाचक्ष्व हरिवार्तासमन्वितम्॥५॥
सूत उवाच। साधु साधु महाभागाः साधु पृष्टं तपोधनाः। तं प्रणम्य प्रवक्ष्यामि पुराणं पद्मसंज्ञकम्॥६॥ सहस्रं पञ्चपञ्चाशत् षड्भिः खण्डैः समन्वितम्। तत्रादावादिखण्डं स्याद् भूमिखण्डं ततः परम् ॥७॥ ब्रह्मखण्डं च तत्पश्चात् तत: पातालखण्डकम्। क्रियाखण्डं ततः ख्यातमुत्तरं खण्डमुत्तमम्॥८॥
शौनक आदि महाभाग तपस्वियों ने उसको पूछा-हे महाबुद्धे ! सुव्रत! पौराणिक रोमहर्षण! पहले भी तुम से हमने महापुण्य युक्त पौराणिक कथाएँ सुनी हैं॥३-४॥
इस समय हरि कथा सुनने को हमारा अतीव उत्सुक है इसलिए हरिवार्ता से सम्बन्धी पुराण कथा करो॥५॥ सूत ने कहा
हे महाभाग तपस्वियो! आप धन्य हैं आपने बहुत अच्छा पूछा है मैं भगवान् हरि को प्रणाम कर पद्म पुराण की कथा कह रहा हूँ॥६॥
. जो कि पचपन हजार श्लोकों तथा छः खण्डों में है उसमें प्रारम्भ में आदिखण्ड, तत्पश्चात् भूमिखण्ड॥७॥ __तदनन्तर ब्रह्मखण्ड, उसके बाद पातालखण्ड, उसके बाद क्रियाखण्ड प्रसिद्ध है, तदनन्तर उत्तम उत्तरखण्ड है॥८॥
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