Book Title: Puran Nirmanadhikaranam
Author(s): Madhusudan Oza, Chailsinh Rathod
Publisher: Jay Narayan Vyas Vishwavidyalay

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Page 75
________________ G पुराणनिर्माणाधिकरणम् मध्यमो ह्येष सूतस्य धर्मः क्षत्रोपजीविनः। । पुराणेष्वधिकारो मे विहितो ब्राह्मणैरिह॥२२॥ दृष्ट्वा धर्ममहं पृष्टो भवद्भिर्ब्रह्मवादिभिः । तस्मात् सम्यग् भुवि ब्रूयां पुराणमृषिपूजितम् ॥२३॥ प्रवक्ष्यामि महापुण्यं पुराणं पद्मसंज्ञितम्। सहस्रं पञ्चपञ्चाशत् पञ्चखण्डैः समन्वितम् ॥२४॥ तत्रादौ सृष्टिखण्डं स्याद् भूमिखण्डं ततः परम्। स्वर्गखण्डं ततः पश्चात् ततः पातालखण्डकम्॥२५॥ पञ्चमं च तत: ख्यातमुत्तरं खण्डमुत्तमम्। एतदेव महापद्ममुद्भूतं यन्मयं जगत् ॥२६॥ तवृत्तान्ताश्रयं यस्मात् पाद्ममित्युच्यते ततः। एतत्पुराणममलं विष्णुमाहात्म्यनिर्मलम्॥२७॥ क्षत्र धर्म की उपजीविका सूत का मध्यम धर्म रथ, हाथी तथा अश्वों का सञ्चालन है तथा चिकित्सा तृतीय धर्म है। हे ब्राह्मणों! आपने मुझे पुराणों में अधिकार दिया है, मेरा धर्म दृष्टि में रखकर आप जैसे ब्रह्मवादियों ने जो कुछ पूछा है-तदनुसार इसलिए पृथ्वी पर ऋषि पूजित पुराण अच्छी तरह से कह रहा हूँ॥२२-२३॥ पचपन हजार श्लोक वाला पाँच खण्डों में विभक्त महापुण्य यह पद्म नामक पुराण है॥२४॥ . इसमें सबसे पहले सृष्टि खण्ड की कथा होगी, तत्पश्चात् भूमिखण्ड उसके बाद स्वर्गखण्ड, उसके बाद पातालखण्ड॥२५॥ अन्त में सबसे श्रेष्ठ पञ्चम खण्ड उत्तरखण्ड की कथा होगी। यह महा पद्म उत्पन्न हुआ हैं जिससे जगत् का निर्माण हुआ॥२६॥ उस पद्म तथा पद्ममय जगत् के वृत्तान्त से सम्बद्ध होने के कारण यह पुराण पाद्म कहा जाता है। विष्णु के निर्मल माहात्म्य से युक्त यह पुराण सर्वथा अमल (पूर्णतया दोषशून्य) है॥२७॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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