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पुराणनिर्माणाधिकरणम् क्रोधाकुलितो जघान। ततो लोमहर्षणे पञ्चत्वं गते व्यथितहृदयस्तैः शौनकादिभिर्बलभद्रपरामर्शेन तत्पुत्रमुग्रश्रवसं नामसूतमाहूयाध्यासनं दत्वाऽवशिष्टं तत्सार्द्ध सप्तकं पुराणानामश्रूयत तदेतदुक्तम् पाद्मोत्तरखण्डे भागवतमाहात्म्ये।
शिव उवाच।
ब्राह्यं पानं वैष्णवं च कौर्मं मात्स्यं च वामनम्। वाराहं ब्रह्मवैवर्तं नारदीयं भविष्यकम्॥१॥ आग्नेयमर्द्ध वै सूताच्छुश्रुवुर्लोमहर्षणात्। ... एतानि तु पुराणानि द्वापरान्ते श्रुतानि हि॥२॥ शौनकाद्यैर्मुनिवरैर्यज्ञारम्भात् पुरैव हि। . यदा तु तीर्थयात्रायां बलदेवः समागतः॥३॥
अयोग्य भी लोमहर्षण को उच्चासीन देखकर क्रोध से भरकर उसको मार दिया। उसके पश्चात् लोमहर्षण के मरने पर दुःखित हृदय वाले उन शौनक आदि ने बलभद्र के परामर्श से उसके पुत्र उग्रश्रवा नामक सूत को बुलाकर वही उच्च आसन देकर शेष साढ़े सात पुराण सुने। यह बात पद्म पुराण के उत्तरखण्ड के भागवत माहात्म्य में कही गयी है (भगवती पार्वती को भगवान् शिव कथा कह रहे हैं)
शिव ने कहा
१. ब्राह्म, २. पद्म, ३. वैष्णव, ४. कौर्म, ५. मात्स्य, ६. वामन, ७. वाराह, ८. ब्रह्मवैवर्त, ९. नारदीय, १०. भविष्य॥१॥
और आधे आग्नेयपुराण का सूत लोमहर्षण के मुख से श्रवण किया। इन पुराणों का द्वापर के अन्त में शौनक आदि श्रेष्ठ मुनियों ने यज्ञ आरम्भ से पहले ही श्रवण कर लिया था॥२-३॥
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