Book Title: Puran Nirmanadhikaranam
Author(s): Madhusudan Oza, Chailsinh Rathod
Publisher: Jay Narayan Vyas Vishwavidyalay

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Page 71
________________ पुराणनिर्माणाधिकरणम् देवपद्मपुराणाद् विज्ञायते। स्मर्य्यते हि तत्रोग्रश्रवः प्रोक्ते पाद्मे सृष्टिखण्डे पुराणोपक्रम लोमहर्षणाज्ञया उग्रश्रवसः पाद्मपुराणकथनम् तथाहि— सूतमेकान्तमासीनं व्यासशिष्यो महामतिः । लोमहर्षणनामा वा उग्रश्रवसमाह तत् ॥१ ॥ ऋषीणामाश्रमाँस्तात गत्वा धर्मान् समासतः । पृच्छतां विस्तराद् ब्रूहि यन्मत्तः श्रुतवानसि ॥२॥ वेदव्यासान्मया पुत्र ! पुराणान्यखिलानि च । तवाख्यातानि प्राप्तानि मुनिभ्यो वद विस्तरात् ॥३॥ ईजिरे दीर्घसत्रेण ऋषयो नैमिषे तदा । तत्र गत्वा तु तान् ब्रूहि पृच्छतो धर्मसंशयान् ॥४॥ उग्रश्रवास्ततो गत्वा ज्ञानविन्मुनिपुङ्गवान् । अभिगम्योपसंगृह्य नमस्कृत्वा कृताञ्जलिः ॥ ५ ॥ Jain Education International लोमहर्षण की आज्ञा से नैमिषारण्य जाकर पिता की भाँति पुराणों का श्रवण करवाया था यह बात भी इसी पद्म पुराण से ही ज्ञात होती है । उग्रश्रवा के द्वारा कथित सृष्टि खण्ड के 'पुराण उपक्रम प्रकरण' में इस विषय को कहा गया है कि लोमहर्षण की आज्ञा से उग्रश्रवा द्वारा पद्मपुराण का कथन किया गया— एकान्त में बैठे हुए सूत उग्रश्रवा को महामति व्यास शिष्य लोमहर्षण ने कहा ॥ १ ॥ हे प्रिय पुत्र ! ऋषियों के आश्रम में जाकर धर्मों के बारे में संक्षेप से पूछते हुए भी उनको विस्तार से वह सब कुछ सुनाओ जो तुमने मुझसे सुना है ॥२॥ हे पुत्र ! वेद व्यास से प्राप्त समस्त पुराणों को मैंने तुम्हें पढ़ाया है, विस्तार से उन्हें मुनियों को सुनाओ ॥ ३॥ ऋषियों ने नैमिषारण्य में 'दीर्घ सत्र' यज्ञ किया। वहाँ जाकर धर्म के विषय में अपने संशय पूछते हुए उन मुनियों के संशय दूर करते हुए पुराण कथा कहो ॥४ ॥ ज्ञानविद् और मेधावी उग्रश्रवा ने श्रेष्ठ मुनियों के पास जाकर पैर छूकर उनको करबद्ध नमस्कार प्रणति से प्रसन्न किया ॥५॥ ६७ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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