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पुराणनिर्माणाधिकरणम्
तेषु हि तत्संहिताचतुष्टयोपात्तानां कथानकानां पश्चादपि काले काले मुनिसमाजेषु तत्र-तत्र कथोपकथनादिना सात्विकराजसतामसोपासनाद्यनेकविभिन्नार्थप्राधान्यानुरोधेन च मुख्योद्देशभेदादितिहासप्रबन्धभेदः प्रावर्तत। अथायमितिहासविद्यावृत्तिकतया नियमितः सूतो लोमहर्षणः पश्चात्सम्भूतानामपि तत्तत्पुराणविद्यानुगतानां पुलस्त्यभीष्मादिपराशरमैत्रेयादि तत्तन्मुनिसंवादानां यथायथं विद्वान् पुराणप्रचारणाय कदाचिन्नैमिषारण्यं गत्वा तानि वेदव्यासेनैवादावष्टादशधापरिच्छिन्नानि संहिताष्टकमध्यात्कतिपयसंहितोल्लेखानुबन्धीनि तानि शौनकादिभ्यो जिज्ञासुभ्य आचचक्षे। तत्र यद्यपि तेषामष्टादशानां वेदव्यासव्यस्तानां पुराणानां पौर्वापर्य्यमन्यथां नियतमथापि जिज्ञासुजिज्ञासानुरोधिप्रवृत्तिकतया तत्क्रमानपेक्ष्येणैवायं लोमहर्षणस्तेभ्यो ब्राह्मं पाद्यं वैष्णवं कौम मात्स्यं वामनं वाराहं ब्रह्मवैवर्तं नारदीयं भविष्यमित्येतानि दश पूर्णानि श्रावयित्वा आग्नेयस्याप्यर्द्ध श्रावितवान्। अथ दैवान्नैमिषारण्यमागतो बलभद्रस्तत्रावशिष्टमाग्नेयं श्रावयन्तमेवैनं शूद्रत्वादुच्चासनायोग्यमप्युच्चासनासीनं दृष्ट्वा
उन चार संहिताओं में गृहीत कथानकों का बाद में भी समय-समय पर मुनि समाजों में वहाँ-वहाँ कथोपकथन आदि के द्वारा सात्विक राजस और तामस उपासना आदि अनेक विभिन्नार्थक विषयों की प्रधानता के अनुरोध से मुख्य उद्देश्य के भेद से इतिहास प्रबन्ध भेद प्रवृत्त हुआ। कालान्तर में इतिहास विद्या वृत्ति से नियमित सूत लोमहर्षण ने बाद में उत्पन्न हुए भी तत् तत् पुराण विद्याओं से अनुगत पुलस्त्य भीष्म आदि पराशर मैत्रेय आदि तत् तत् मुनि संवादों के यथार्थ रूप से ज्ञाता हो पुराणों के प्रचार के लिए कभी नैमिषारण्य जाकर वेद व्यास ने ही आदि में अठारह प्रकार से सीमित संहिताष्टकों के मध्य से कतिपय संहिताओं के उल्लेख से सम्बन्धित विषयों को शौनक आदि जिज्ञासुओं को बतलाया। वेद व्यास के द्वारा प्रसारित अठारह पुराणों का पौर्वापर्य्य यद्यपि अन्यथा नियत था तथापि जिज्ञासुओं की जिज्ञासा मानकर चलने की अनुरोध प्रवृत्ति से उनके क्रम की अपेक्षा किए बिना ही इस लोमहर्षण ने उनके लिए ब्राह्म पद्म वैष्णव कौम मत्स्य वामन वाराह ब्रह्मवैवर्त नारदीय भविष्य इन दस पूरे पुराणों को सुनाकर आधा आग्नेय पुराण भी सुनाना आरम्भ किया। इसी समय संयोग से नैमिषारण्य में आये हुए बलभद्र ने वहाँ शेष आग्नेय पुराण सुनाते हुए शूद्र होने के कारण उच्चासन के
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