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पुराणनिर्माणाधिकरणम् नुरोधिन्या एकस्याः पुराणसंहिताया अपि लोमहर्षणात्मकशिष्यप्रशिष्य प्रणालीभेदेन संहिताचतुष्टयीद्वारा क्रमशः इदानीं प्रसिद्धान्यष्टादशनिबन्धजातानि विभिन्नाकाराणि प्रासिद्ध्यन्त। तथा चोक्तं कौर्मेऽपि
पराशरसुतो व्यासः कृष्णद्वैपायनोऽभवत्। स एव सर्ववेदानां पुराणानां प्रदर्शकः॥१॥ अथ शिष्यान् स जग्राह चतुरो वेद पारगान् । जैमिनिं च सुमन्तुं च वैशम्पायनमेव च ॥२॥ पैलं तेषां चतुर्थं च पञ्चमं मां महामुनिः। ऋग्वेदंपाठकं पैलं जग्राह स महामुनिः ॥३॥ यजुर्वेदप्रवक्तारं वैशम्पायनमेव च। जैमिनि सामवेदस्य पाठकं सोऽन्वपद्यत॥४॥ तथैवाथर्ववेदस्य सुमन्तुमृषिसत्तमम्।
• इतिहासपुराणानि प्रवक्तुं मामयोजयत्॥५॥ एक पुराण संहिता के भी लोमहर्षण आदि शिष्य-प्राशष्यों प्रणाली के भेद से चार संहिताओं के द्वारा ही इस समय प्रसिद्ध अठारह पुराण ग्रन्थ विभिन्न आकार-प्रकारों को लेकर प्रसिद्ध हुए। जैसा कि कूर्म पुराण में कहा गया है
सूत बोलेपराशर के पुत्रं कृष्णद्वैपायन व्यास हुए। वही समस्त वेदों तथा पुराणों के प्रदर्शक
हुए॥१॥
- अनन्तर उन्होंने चार शिष्यों को वेद-पारंगत बनाने हेतु अपनाया, जो जैमिनि, सुमन्तु, वैशम्पायन और पैल हैं॥२॥
____ तथा महामुनि का पञ्चम शिष्य मैं हूँ। उन महामुनि ने पैल को ऋग्वेद का पाठक बनाया॥३॥
___ वैशम्पायन को यजुर्वेद का प्रवक्ता तथा जैमिनि को सामवेद का पाठक बनाया॥४॥ .. अथर्ववेद का पाठक ऋषि श्रेष्ठ सुमन्तु को बनाया और इतिहास पुराणों का प्रवचन करने के लिए मुझे नियुक्त किया॥५॥
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