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पुराणनिर्माणाधिकरणम् सर्गे च प्रतिसर्गे च वंशमन्वन्तरादिषु। कथ्यते भगवान् विष्णुरशेषेष्वेव सत्तम॥१२॥
(विष्णु पुराण ३/६/१५-२७)
वायु पुराणेऽपि
लोमहर्षण उवाच। षट्शः कृत्वा मयाप्युक्तं पुराणमृषिसत्तमाः। आत्रेयः सुमतिर्धीमान् काश्यपो ह्यकृतव्रणः॥१॥ ६१/५५ भारद्वाजोऽग्निवर्चाश्च वसिष्ठो मित्रयुश्चयः। सावर्णिः सोमदत्तिस्तु सुशर्मा शांशपायनः ॥२॥ ५६ एते शिष्या मम ब्रह्मन् पुराणेषु दृढव्रताः। त्रिभिस्तत्र कृतास्तिस्रः संहिताः पुनरेव हि ॥३॥ ५७
हे साधु श्रेष्ठ! इसमें सर्ग, प्रतिसर्ग, वंश और मन्वन्तरादि में सर्वत्र केवल विष्णु भगवान् का ही वर्णन किया गया है॥१२॥
(श्री विष्णुपुराण-३/६/१५-२७) वायु पुराण में भी यही कहा गया है
..... लोमहर्षण ने कहा- हे ऋषिवर्यवृन्द! मैंने भी पुराण का छ: प्रकार के विभागों में उपदेश किया है। अत्रि, गोत्रोत्पन्न बुद्धिमान् सुमति, काश्यपगोत्रीय अकृतव्रण॥१॥
अग्निवर्चा भारद्वाज, वशिष्ठ गोत्रोत्पन्न मित्रयु, सोमदत्तपुत्र सावर्णि और सुशर्मा शांशपायन॥२॥
हे विप्रवृन्द! ये हमारे पुराणों में शिष्य हैं, जो सब के सब दृढ़ व्रतधारी हैं। इनमें से तीन शिष्यों ने तीन संहिताओं का निर्माण किया॥३॥
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