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पुराणनिर्माणाधिकरणम्
पराशर उवाच। आख्यानैश्चाप्युपाख्यानैर्गाथाभिः कल्पशुद्धिभिः। पुराणसंहितां चक्रे पुराणार्थविशारदः॥१॥ ३/६/१५ प्रख्यातो व्यासशिष्योऽभूत् सूतो वै रोमहर्षणः। पुराणसंहितां तस्मै ददौ व्यासो महामुनिः॥२॥ ३/६/१६
-महामतिः मुद्रित वि.पु. पाठ सुमतिश्चाग्निवर्चाश्च मित्रायुः शांशपायनः। अकृतव्रणसावर्णिः षट् शिष्यास्तस्य चाभवन् ॥३॥ ३/६/१७ काश्यपः संहिताकर्ता सावर्णिः शांशपायनः। रोमहर्षणिका चान्या तिसृणां मूलसंहिता॥४॥ ३/६/१८ चतुष्टयेन भेदेन संहितानामिदं मुने। आद्यं सर्व पुराणानां पुराणं ब्राह्ममुच्यते॥५॥ ३/६/१९
पराशर बोले
पुराणार्थ विशारद व्यास जी ने आख्यान, उपाख्यान गाथा और कल्पशुद्धि के सहित पुराण संहिता की रचना की॥१॥
रोमहर्षण सूत व्यास जी के प्रसिद्ध शिष्य थे। महामुनि व्यासजी ने उन्हें पुराणसंहिता का अध्ययन कराया॥२॥
उस सूतजी के सुमति, अग्निवर्चा, मित्रयु, शांशपायन, अकृतव्रण और सार्वणिये छः शिष्य थे॥३॥
___काश्यपगोत्रीय अकृतव्रण, सार्वणि और शांशपायन ये तीन संहिताकर्ता हैं। उन तीनों संहिताओं की आधार एक लोमहर्षण की संहिता है॥४॥
हे मुने! इन चार संहिताओं से मैंने विष्णुपुराण संहिता बनायी है। पुराणज्ञ कुल अठारह पुराण बतलाते हैं, उन सब में (आदिम) ब्रह्मपुराण है॥५॥
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