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पुराणनिर्माणाधिकरणम् मन्वादयो धर्मसूत्रम् धन्वन्तरिचरकादय आयुर्वेद शाकपूणि यास्कादयो निरुक्तम् इन्द्रपाणिन्यादयो व्याकरणं प्रवर्तयाञ्चक्रिरे तथैव वसिष्ठप्रपौत्रः, शक्तिपौत्रः पराशरपुत्रः सत्यवतीगर्भजातो भगवान् कृष्णद्वैपायनो लोकोपकारार्थं सर्वेभ्यो ब्राह्मणग्रन्थेभ्यः सर्वाण्युपाख्यानानि संकलय्यचिरप्रतीता ब्राह्मणाधुल्लिखिताश्च तास्ता गाथाः सङ्गृह्य कथाप्रसङ्गसङ्गता कल्पशुद्धीश्च यथायथमनुबन्ध्य सर्वाण्येतानि लौकिकाख्यानविमिश्रितानि सङ्गतिबद्धानि कृत्वा पूर्व-निर्दिष्टवेदरूपब्रह्माण्डपुराणोक्तपदार्थं जगत्सर्गप्रतिसर्गात्मकं तदेतदाख्यानोपाख्यानगाथाकल्पशुद्ध्यात्मकविषयचतुष्टयेनोपगुम्फ्याष्टादशधा परिच्छिद्य रूपान्तरसंस्कृतामेकां पुराणसंहितां चक्रे। तत्र पुराणपदव्यपदिष्टानां विश्वसृष्टिविद्यानां ब्राह्मणाधुल्लिखितानां संग्रहेणैकत्र समुच्चयकरणात् पुराणसंहितापदव्यपदेशः। तां च पुनः स्वशिष्याय सूतजाताय लोमहर्षणाय पाठयामास स चायं लोमहर्षणोऽपि तदधिगतसर्वोपाख्यानः सर्ग-प्रतिसर्ग-वंश-वंश्यचरितमन्वन्तरात्मकविषयपञ्चकेन परिच्छिद्यापरामेकां संहितां लोमहर्षणीं नाम प्रस्तावितवान् तां च पुनः षड्भ्यः स्वशिष्येभ्यो ददौ ते यथा सुमतिः १ अग्निवर्चाः-२ मित्रयुः-३ सुशर्मा-४ धर्मसूत्र का, धन्वन्तरि चरक आदि ने आयुर्वेद का, शाकपूणि और यास्क ने निरुक्त का, इन्द्र और पाणिनि आदि ने व्याकरण का प्रवर्तन किया उसी प्रकार वसिष्ठ के प्रपौत्र, शक्ति के पौत्र पराशर के पुत्र सत्यवती के गर्भ से उत्पन्न भगवान् कृष्ण द्वैपायन ने लोकों के उपकार के लिए समस्त ब्राह्मण ग्रन्थों से समस्त उपाख्यानों का संकलन करके चिरकाल से लोक ज्ञान का विषय बनी हुई, ब्राह्मण आदि में उल्लिखित उन उन गाथाओं का संग्रह करके कथा प्रसङ्ग से सङ्गत रूप से सथा कल्प शुद्धियों का यथार्थ रूप से निबन्धन कर इन समस्त लौकिक आख्यानों को मिलाकर सङ्गतिबद्ध कर पूर्व निर्दिष्ट वेद रूप ब्रह्माण्ड पुराण में उक्त जगत् के सृष्टि प्रतिसृष्टि विषय को आख्यान उपाख्यान गाथा
और कल्प शुद्धि रूप इन चार विषयों में उपगुंफित कर, अठारह प्रकार से विभक्त कर, नये रूप में संस्कृत एक पुराण संहिता का निर्माण किया। ब्राह्मण आदि में उल्लेखित पुराण पद से कथित विश्व सृष्टि विद्याओं के संग्रह से उन्हें एक स्थान पर समुच्चित करने के कारण इसे 'पुराण संहिता' नाम दिया गया। फिर उस पुराण संहिता को अपने शिष्य सूत पुत्र लोमहर्षण को पढ़ाया। उस लोमहर्षण ने भी समस्त उपाख्यानों का ज्ञान प्राप्त कर सर्ग, प्रतिसर्ग, वंश, वंश्यचरित्र और मन्वन्तर नाम के इस विषयपंचक के द्वारा पूर्ण एक अन्य लौमहर्षिणी नामक संहिता को तैयार किया। और उसको अपने छः शिष्यों को प्रदान किया उनके नाम इस प्रकार है—१. सुमति २. अग्निवर्चा ३. मित्रयु ४. सुशर्मा
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