Book Title: Puran Nirmanadhikaranam
Author(s): Madhusudan Oza, Chailsinh Rathod
Publisher: Jay Narayan Vyas Vishwavidyalay

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Page 58
________________ पुराणनिर्माणाधिकरणम् लिककल्पनाविषयत्वासंभवात् तस्मात् चिरन्तनाद् ब्रह्माण्डपुराणाद् ब्रह्मणा प्रस्तुतादेवैतानि संकलितानीत्यभिमानेन ब्राह्मणोल्लिखितानामपि पुराणार्थानां ब्रह्मकृतत्वमभिप्रेत्य सूतेनानुक्रमेणेदं पुराणं संप्रकाशितम्। ब्राह्मणेषु पुरायच्च ब्रह्मणोक्तं सविस्तरम् ॥ २/५० इत्युक्तं पाये सृष्टिखण्डे पुराणावतारे। अन्ये तु ब्राह्मणग्रन्थकर्तुस्तस्य तस्यमहर्षेः सार्वविद्यऋत्वित्क्वाभिमानेन ब्राह्मणोल्लिखितार्थानां ब्रह्मप्रोक्तत्वमाख्यायते इत्याचक्षते। अथैतेषु ब्राह्मणग्रन्थेषु सूत्रपातात्मना प्रायेण सर्वासामेव विद्यानामुल्लेखसत्त्वेपि वैशयेन सजातीयसमुच्चयक्रमबन्धेन पार्थक्येन चानुल्लेखात् स्पष्टमप्रतीतेः शिक्षाक्लेशमनुलक्ष्य विधेयानुग्रहार्थंपश्चात् काले काले विशिष्टबुद्धयो महर्षयस्तेभ्यो ब्राह्मणग्रन्थेभ्यो यथाप्रतिभासमुत्कर्षं तां तां विद्यां पृथक्कृत्य युक्तिप्रयुक्तिसंसाधनसमुपवृंहितरूपेण विशदीकृत्य प्रवर्तयामासुः तत्र यथा कपिलपतञ्जल्यादयः सांख्ययोगप्रवचनम् वात्स्यायनादयः कामसूत्रम् होने के कारण उनकी मन्त्र रचना के उत्तरकाल में कल्पना सम्भव न होने से ब्रह्मा के उस चिरन्तन ब्रह्माण्ड पुराण के द्वारा प्रस्तुत ही ये संकलित किए गए हैं। इस अभिप्राय से ब्राह्मणों में उल्लिखित भी पुराण विषयों को ब्रह्म कर्तृत्व मानकर सूत के द्वारा यह पुराण अनुक्रम से सम्प्रकाशित किया गया है जो प्राचीनकाल में ब्रह्मा के द्वारा विस्तारपूर्वक ब्राह्मणों में कहा गया है। ऐसा पद्म पुराण के सृष्टि खण्ड में पुराणावतरण के विषय में कहा गया है। अन्य विद्वान् तो ब्राह्मण ग्रन्थों के कर्ता उस उस महर्षि की जो चारों वेदों का ज्ञाता ऋत्विक होने से ब्रह्मा माना जाता है कृति मानते हैं इस प्रकार के प्रसिद्ध व्यवहार से ब्राह्मण ग्रन्थों में उल्लिखित विषयों को 'ब्रह्मा द्वारा किया हुआ ही मानते हैं। इन ब्राह्मण ग्रन्थों में सूत्रपात रूप से प्रायः सभी विद्याओं का उल्लेख होने पर भी विशद रूप से सजातीय विद्याओं की अपेक्षित समुच्चय क्रम बन्ध से और पृथक् रूप से उल्लेख न होने के कारण स्पष्ट प्रतीति न होने से विधेयों के शिक्षा क्लेश को लक्षित कर उन विधेयों के अनुग्रहार्थ समय-समय पर विशिष्ट बुद्धि वाले महर्षियों ने उन ब्राह्मण ग्रन्थों से प्रतिभा के उत्कर्ष के अनुसार तत् तत् विद्या को अलग कर युक्ति प्रयुक्ति के उत्तम साधन रूप उपबृंहण से विशद व्याख्या के साथ प्रवृत्त किया है, जैसे कपिल, पतञ्जलि आदि ने सांख्य और योग का, वात्स्यायन आदि ने कामसूत्र का, मनु आदि ने Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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