Book Title: Puran Nirmanadhikaranam
Author(s): Madhusudan Oza, Chailsinh Rathod
Publisher: Jay Narayan Vyas Vishwavidyalay

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Page 56
________________ ५२ पुराणनिर्माणाधिकरणम् मत्स्य उवाच- पुराणं सर्वशास्त्राणां प्रथमं ब्रह्मणा स्मृतम्। अनन्तरं च वक्त्रेभ्यो वेदास्तस्य विनिर्गताः॥१॥ पुराणमेकमेवासीत्तदा कल्पान्तरेऽनघ। त्रिवर्गसाधनं पुण्यं शतकोटिप्रविस्तरम् ॥२॥ कालेनाग्रहणं दृष्ट्वा पुराणस्य ततो नृप। तदष्टादशधा कृत्वा भूर्लोकेऽस्मिन् प्रकाश्यते॥३॥ तथा च पा — “पुरापरंपरां वक्ति पुराणं तेन वै स्मृतमिति'। उक्तं च बृहन्नारदीयेऽपि ब्रह्माण्डं च चतुर्लक्षं पुराणत्वेन पठ्यते, तदेव व्यस्य गदितमत्राष्टादशधा पृथक् ॥१॥ पाराशर्येण मुनिना सर्वेषामपि मानद, . .. वस्तु दृष्ट्वाथतेनैव मुनीनां भावितात्मनाम्॥२॥ मत्तः श्रुत्वा पुराणनि लोकेभ्यः प्रचकाशिरे" इति तदेतत्ब्रह्मवाक्येन पूर्व-प्रसिद्धपुराणग्रन्थावलम्बेनैव पश्चादष्टादशपुराणाना मत्स्य ने कहा-ब्रह्मा द्वारा सब शास्त्रों में सबसे पहले पुराण कहा गया है उसके पश्चात् उसके मुखों से वेद विनिर्गत हुए॥१॥ केवल एक ही पुराण था उस समय कल्पान्तर में धर्म, अर्थ, काम इस त्रिवर्ग का साधन पवित्र सौ करोड़ विस्तार वाला था॥२॥ हे नृप! समय बीतने पर पुराण का अध्ययन में अग्रहण जानकर, इस कारण से इसे अठारह प्रकरण का रूप देकर इस भूलोक में प्रकाशित किया गया।॥३॥ इसी भाँति पद्म पुराण में भी कहा गया है—“प्राचीन परम्परा को कहता है इसलिए पुराण माना जाता है।" बृहद् नारदीय में भी कहा गया है—“चार लाख श्लोकों वाला ब्रह्माण्डपुराण पुराण के रूप में माना जाता है। उसी को व्यास पद्धति से यहाँ अठारह प्रकार से अलग कहा गया है। जो पवित्र अन्तकरण वाले मुनियों में से पराशर मुनि के आत्मज उन व्यास के द्वारा यथार्थ वस्तु देखकर, मुझसे (ब्रह्मा) पुराणों का श्रवण करके लोकों के लिए प्रकाशित किया गया।" ब्रह्मा के इस वाक्य से पूर्व प्रसिद्ध पुराण ग्रन्थ के Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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