Book Title: Puran Nirmanadhikaranam
Author(s): Madhusudan Oza, Chailsinh Rathod
Publisher: Jay Narayan Vyas Vishwavidyalay

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Page 55
________________ ॥श्रीः॥ अथ पुराणसमीक्षायां पुराणसाहित्याधिकारः। पुराणनिर्माणाधिकरणम् अर्थतत्कतिपयमन्त्रब्राह्मणग्रन्थाविर्भावकालादपि पूर्वं तत्समकालमेव वा आसीदेको ब्रह्माण्डपुराणाख्यो वेदविशेषः सृष्टि-प्रतिसृष्टि-निरूपणात्मा “इदं वा अग्नेनैव किञ्चिदासीदित्यादिनोपक्रान्त इति विज्ञायते। तत्परतयैव च "ऋग्वेदो यजुर्वेदः सामवेदोऽथर्वाङ्गिरस इतिहासः पुराणं विद्या उपनिषदः श्लोकाः सूत्राण्यनुव्याख्यानानि व्याख्यानानीति" शतपथब्राह्मणादिवचनान्तर्गतं पुराणपदमुपनीयते। तस्य च पुरावृतपरम्पराख्यानात्मकतया ब्रह्माण्डसृष्टिविचारात्मकतया च ब्रह्माण्डपुराणसंज्ञा। तदुक्तं मात्स्ये॥ पुराणसमीक्षा के अन्तर्गत पुराणसाहित्य सम्बन्धी अधिकार पुराणनिर्माण सम्बन्धी प्रस्ताव (भूमिका) कुछ मन्त्रों और ब्राह्मणों के ग्रथन के आविर्भाव काल से भी पहले अथवा समकाल में ही सृष्टि और प्रतिसृष्टि का निरूपण करने वाला “निश्चित ही यह पहले कुछ नहीं था" इत्यादि से प्रारब्ध यह एक ब्रह्माण्ड पुराण नामक वेद विशेष था ऐसा विज्ञात होता है। "ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्वाङ्गिरस, इतिहास, पुराण, विद्या, उपनिषद्, श्लोक, सूत्र अनुव्याख्यान और व्याख्यान" शतपथब्राह्मण के इस वचन के अन्तर्गत पुराण शब्द तत्परक ही अर्थात् ब्रह्माण्ड पुराण-परक ही ज्ञात होता है। और उसके पुरावृत परम्परा के आख्यानात्मक होने से और ब्रह्माण्ड सृष्टि विचारात्मक होने से उसका ब्रह्माण्ड पुराण नाम है। जैसा कि मत्स्य पुराण में कहा गया है Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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