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पुराणनिर्माणाधिकरणम्
अकृतव्रणः -५ सोमदत्तिः - ६ । एत एव गोत्रनाम्नां क्रमेण १ - आत्रेयः २- भारद्वाज़ः '३-वसिष्ठः ४-शांशपायनः ५-काश्यपः ६ - सावर्णिः इत्याख्यायन्ते । त एते षडपि पुनस्तस्या लोमहर्षण्या मूलसंहिताया आदि संहितायाश्च बादरायण्या आधारेण स्वस्वेच्छाक्रमनिबद्धाः षट् संहिता रचयामासुः। तासु च जिज्ञासाख्यानसंवादप्रवृत्त्यनुरोधिप्रसङ्गसम्पतितसंक्षिप्तविस्तरानेक विभिन्नकथानकोपेतत्वाद्विभिन्नाकारास्वपि सर्गप्रतिसर्गादयः सामान्या धर्म्मा सर्वासु तदितरैस्तु तैस्तैर्विषयैः साधर्म्यं च वैधर्म्यं चान्यासामन्यासाम् तदित्थं साकल्येनाष्टौ संहिता जाताः इति केचित् । वायुपुराणविष्णुपुराणयोस्तु चतस्र एव संहिता उच्यन्ते १ - लौमहर्षणिका २काश्यपिका ३-सावर्णिका ४- शांशपायनिका चेति । एतत्संहिताचतुष्टयाधारेणैव ब्रह्मपुराणादीन्यऽष्टादशपुराणप्रकरणानि वेदव्यासकल्पितानीदानीं प्रसिद्धाष्टादशनिबन्धरूपैरुग्रश्रवःप्रभृतिसूतसमुपबृंहितानि समपद्यन्त । तथाच विष्णुपुराणम् -
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५. अकृतव्रण और ६. सौमदत्ति । ये ही छः गोत्र के नाम से क्रमशः १. आत्रेय, २. भारद्वाज, ३. वसिष्ठ, ४. शांशपायन, ५. काश्यप और ६. सावर्णि कहे जाते हैं । ( उन छः ने ही पुनः मूल संहिता लौमहर्षिणी और आदि संहिता बादरायणी के आधार से स्वस्व इच्छा के क्रम से निबद्ध छः संहिताओं की रचना की और उनमें जिज्ञासा और आख्यान रूप संवाद की प्रवृत्ति के अनुसार ही प्रसङ्गतः प्राप्त संक्षिप्त और विस्तृत अनेक विभिन्न कथानकों से युक्त होने के कारण विभिन्न आकार वाली होने पर भी सर्ग, प्रतिसर्ग आदि सामान्य धर्म सब में थे, उनसे इतर उन उन विषयों से साधर्म्य और अन्य में वैधर्म्य, इस प्रकार एक रूप तथा पृथक् स्वरूप वाली सम्पूर्ण रूप से आठ संहिताएँ हो गयी ऐसा कुछ लोग मानते हैं। वायुपुराण और विष्णुपुराण में चार ही संहिताएँ कहीं जाती हैं—१. लौमहर्षणिका, २. काश्यपिका, ३. सावर्णिका और ४. शांशपायनिका । इन चार संहिताओं के समूह के आधार से ही ब्रह्मपुराण आदि अष्टादश पुराण प्रकरण जो वेदव्यास द्वारा कल्पित तथा इस समय निबन्ध रूप से प्रसिद्ध हैं उग्रश्रवा आदि सूतों के द्वारा अठारह पुराण रूप में परिवर्धित हुए, जैसा कि विष्णु पुराण में कहा गया है—
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