Book Title: Puran Nirmanadhikaranam
Author(s): Madhusudan Oza, Chailsinh Rathod
Publisher: Jay Narayan Vyas Vishwavidyalay

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Page 21
________________ पुराणनिर्माणाधिकरणम् एक अरब पद्यों का एक ही ग्रन्थ था इस कल्प के रूप में कि इससे ज्ञान विज्ञान की सभी आवश्यकताएँ पूरी हो जावेंगी। ३. कालान्तर में जब ज्ञानार्थी इस विशाल ग्रन्थ के धारण में असमर्थ रहे तो ब्रह्मा ने इस ग्रन्थ को विषय विभाग संरचना क्रम से १८ प्रकार के १८ भागों में विभक्त किया जो कालान्तर में जाकर आज हमारे समक्ष विद्यमान १८, १८, महा और उप पुराणों के रूप में हैं। अपेक्षित कथ्य रूप कल्प के अनुसार ही पद्म, बृहन्नारदीय आदि द्वारा व्यक्त रूपों में इसी तथ्य की अभिव्यक्ति का सङ्केत भी यहाँ है।. विविध ब्राह्मणों में ब्रह्माण्ड पुराण सन्दर्भानुकूल बीच में ही एक पुराण से अठारह पुराणों की उत्पत्ति की बात पूरी कर अब ओझाजी 'ब्राह्मण ग्रन्थाविर्भावकालादपि पूर्वम्' वाले मुख्य प्रतिपाद्य को लेते हुए कहते हैं कि ऐतरेय आदि ब्राह्मणों में प्राप्त सौपर्णोपाख्यान, शुनःशेप आख्यान आदि का मूल वह आदिम पुराण ब्रह्माण्ड पुराण ही रहा है। स्वयम् ब्राह्मण ही कहीं तो यह व्यक्त कर देते हैं कि यह हमारी उपज्ञा नहीं है आख्यान विदों से हमने प्राप्त किया है जैसा कि यहाँ उद्धृत 'सोमो वै राजा' का अन्तिम वाक्य है—तदेतत् सौपर्णमिति आख्यान विद आचक्षते। पुराण में आधिभौतिक, आधिदैविक तथा आध्यात्मिक पक्ष के नाना आख्यान हैं। ब्राह्मण ग्रन्थों में महर्षियों ने इनमें से आख्यान लेकर कहना आरम्भ कर दिया था जो-जो आख्यान मन्त्रों के अर्थ में उपयोगी प्रतीत हए। ब्राह्मण में आख्यान का निबद्धा प्रवक्ता ऋषि ही रहा है तथापि वह उस आख्यान को स्वोपज्ञ नहीं कहता है। आख्यान विदों की सम्पदा ही मानता है। इससे स्पष्ट है कि पुराण ब्राह्मणों के प्रवचन से पूर्व था। अतः ब्राह्मणों के इन आख्यानों को भी ब्रह्म प्रोक्त मानना उचित ही है। यही तथ्य पद्मपुराण-सृष्टिखण्ड-पुराणावतार में सूत उग्रश्रवा ने 'सूतेनानुक्रमेणेदम्' (२/४९) में कहा है। इसमें वही बताया गया है कि ब्रह्मा द्वारा विस्तारपूर्वक जिसका प्रवचन किया गया था तथा जो ब्राह्मणों में भी पूर्वकाल से ग्रथित था उसी पुराण को पारम्परिक अनुक्रम से सूत ने प्रकाशित किया। कुछ ऐसे भी विद्वान् हैं जो ब्राह्मणों के आख्यानों को लोक पितामह ब्रह्मा द्वारा कथित नहीं मानते हैं। वे ब्रह्मा शब्द का सम्बन्ध इनसे न मानकर यज्ञ के ऋत्विज ब्रह्मा से मानते हैं जो सर्वविद्य होता है, अत ऐसे ब्रह्माओं द्वारा प्रोक्त ये आख्यान ब्राह्मणों में तत्तद् महर्षि द्वारा रखे गये हैं। इसे पुराण का दूसरा अवतरण कहा जा सकता है। कृष्ण द्वैपायन कृत पुराणसंहिता वर्तमान पुराणों की परम्परा में आधारभूत कड़ी कृष्ण द्वैपायन की पुराण संहिता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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