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पुराणनिर्माणाधिकरणम्
चुके थे। स्वाभाविक है कि कुछ भी अन्तर आवेगा ही तथा ग्रन्थ रूपों में भिन्नता आवेगी, ऐसे अनेक कारणों से कई पुराणों के दो-दो अथवा अधिक भी रूप हैं।
महाभारत युद्ध में भाग लेने से बचने के लिए बलराम ने उन दिनों तीर्थयात्रा का कार्यक्रम बना लिया था। यह ४२ दिन का था तथा अन्तिम दिवस भीम और दुर्योधन के गदायुद्ध वाला था। अपने यात्रा क्रम में बलराम ने लोमहर्षण को कथा कहते देखा जहाँ वे ऋषियों से भी उच्च आसन पर थे। बलराम ने इसे मर्यादातिक्रम देख कर दण्ड देने के रूप में प्रहार किया तथा लोमहर्षण की मृत्यु हो गयी। अब ऋषियों के कथन से बलराम को अपनी त्रुटि का बोध हुआ। उसी समय से उग्रश्रवा का नियमित कथाक्रम प्रारम्भ हुआ। निरन्तर इतने समय कथा कहते रहने पर भी जब वे महाभारत कथा (लगभग ८०९० वर्ष के अनुभव के बाद भी) कहने जाते हैं तो शौनक महाभारत के विषय में उनको परखते हैं। ऐसे अवसरों पर कथा के क्रम में कई तरह के परिवर्तन आ जाते हैं।
इस प्रकार निरन्तर १०-११ सहस्र वर्षों की निरन्तर यात्रा में उग्रश्रवा तक आतेआते पुराण का स्वरूप बीहड़ वन का रूप ले लेता है। लगभग दो ढाई सहस्र वर्षों से तो स्थिति और भी विकट हो गयी है, पर्याप्त मिश्रण, अज्ञानवश सहस्रों त्रुटियाँ, नाना विपदाओं में ग्रन्थ नाश आदि इस विकटता में प्रबल हेतु रहे हैं। इस स्थिति में इन सब पुराणों के यथार्थ रूप का उद्धार करना कारण-पुरस्सर सब का युक्तियुक्त समाधान देना इन सब में एकवाक्यता के सूत्र को पकड़ना अनन्यसामान्य कार्य है। यह सब कुछ इस भाग में उनके द्वारा बताया गया है। यहाँ पुराण उपपुराण के स्वरूप भेद पर भी गहरी चर्चा है।
. वेद शाखोत्पत्ति क्रम सभी पुराणों में, जहाँ-जहाँ भी पुराणावतरण प्रसङ्ग है, यह विषय वेद के रूप में देखा गया है। वेदों के विभाजन का प्रसङ्ग व्यास के पाँच शिष्यों के अध्यापन से प्रारम्भ होता है एक-एक वेद के लिए एक-एक शिष्य का ग्रहण व्यास करते हैं। प्रसङ्ग ऋग्वेद से प्रारम्भ होता है तथा पुराण पर पूर्ण होता है। यह स्पष्ट ही वेद पुराण का ऐकात्म्य है। । इसी दृष्टि से यहाँ ग्रंथ का दूसरा विभाग वेदशाखोत्पत्ति-क्रम है जो वेदपुराणादिशास्त्रावतारे' अधिकार में है। पैल, वैशम्पायन, जैमिनि तथा सुमन्तु क्रमश: ऋग्, यजुः, साम तथा अथर्ववेद के लिए एवं, रोमहर्षण इतिहास पुराण के लिये व्यास द्वारा दीक्षित किये जाते हैं।
वेद की रक्षा के लिए वेदज्ञों की परम्परा की सुरक्षा अनिवार्य है। इसका एक ही मार्ग
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