Book Title: Puran Nirmanadhikaranam
Author(s): Madhusudan Oza, Chailsinh Rathod
Publisher: Jay Narayan Vyas Vishwavidyalay

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Page 33
________________ पुराणनिर्माणाधिकरणम् द्वारा सुनाये गये ये तीनों आख्यान हैं जो व्यास द्वारा उपाख्यान रूप में निबद्ध हैं। ऐसे प्रसङ्गों को महाभारत में सर्वत्र उपाख्यान नाम दिया गया है। वाल्मीकि रामायण में भी अनेक अनेक उपाख्यान हैं। महर्षि विश्वामित्र द्वारा कथित आख्यानों को वाल्मीकि ने प्रासङ्गिक रूप में निबद्ध किया है जो बालकाण्ड में (१) सिद्धाश्रम वर्णन (२) स्वयम् की उत्पत्ति बताने के क्रम में कुशनाभचरित (३) गङ्गोत्पत्ति (४) इसी का प्रसंग कार्तिकेयोत्पत्ति जिसे 'कुमारसम्भव' नाम विश्वामित्र ने ही दिया है, (५) इसी क्रम में सगर-उपाख्यान, इस प्रकार बालकाण्ड में ही अनेक उपाख्यान हैं। ये वाल्मीकि प्रदत्त है, उनके द्वारा ग्रथित हैं किन्तु उनकी निजी कृति नहीं है, प्रसङ्गोपात्त है प्राचीन परम्परा से प्राप्त हैं। रामायण को सर्वत्र वाल्मीकि कृत 'आख्यान' ही कहा गया है किन्तु जहाँ ग्रन्थ परिचय का प्रसङ्ग है, इसमें शतशः उपाख्यानों का होना बताया गया है। इसका परिचय देते हुए लवकुश राम के प्रश्न के उत्तर में कहते हैं वाल्मीकि भगवान् कर्ता सम्प्राप्तो यज्ञसंविधम्। ... येनेदं चरितं तुभ्यमशेषं सम्प्रदर्शितम् ॥ उ.का. ९४/२५ सन्निबद्धं हि श्लोकानां चतुर्विंशत् सहस्रकम् । उपाख्यानशतं चैव भार्गवेण तपस्विना॥ २६ .. इस आख्यान रामायण के कर्ता भगवान् वाल्मीकि यहाँ यज्ञ में आ पहुँचे हैं जिन्होंने इसमें आपका सम्पूर्ण चरित बताया है। २४००० सुन्दर पद्यों की तथा शतशः उपाख्यानों की रचना तपस्वी भार्गव की है। वंश और वंशानुचरित के अंश में पुराण में अनेक कथाएँ सामान्यतया होती ही है। प्रसङ्ग प्राप्त इन कथाओं को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष जैसे पुरुषार्थों की सिद्धि के लिए अनुकूल रूप में उपाख्यान का रूप देकर पुराण का भाग बनाना चाहिये, केवल. पीढ़ियों की क्रम रचना से वंश को वंशावलि द्वारा देकर तथा अनुवंश में विभक्त शाखा का विवरण देकर इतिकृत्य की पूर्ति नहीं मान लेनी चहिये, यह सन्देश व्यास ने दिया जिसे विष्णु पुराण ने रेखाङ्कित किया है। ___ गाथा और कल्पशुद्धि भी जनजीवन में प्रेरणा के स्तम्भ होने के साथ-साथ जीवन के किसी विशेषातिविशेष पक्ष को तथा धर्ममीमांसा को भी प्रस्तुत करते हैं। भगवान् वाल्मीकि ने राम का आदि से अन्त तक का सम्पूर्ण चरित कहा है। उस समय अवसर विशेष पर रामविषयक सर्वसाधारण की क्या दृष्टि रही है और इसका सहज हार्दिक रूप वाणी के मनोहर विवर्तरूप में प्रकट हो पड़ा है, यह गाथा है। ऐसी सहस्रों Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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