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पुराणनिर्माणाधिकरणम् कार्य भी इस समय के जैसे ही हुए हैं। इस प्रकार कुछ कार्यों की अखण्ड परम्परा को छोड़ कर शेष को अनुमान से बुद्धिगम्य करने का निर्देश है। कृष्ण द्वैपायन ने सर्वसाधारण के लिए भी उपयोगी विषयों को लिया है तथा पूर्वकाल के और वेदों के कुछ विशेष सन्दर्भो को भी पुराण में जोड़ा है। इसे पराशर ने इस पद्य से बताया है
आख्यानैश्चाप्युपाख्यानै र्गाथाभिः कल्पशुद्धिभिः।
पुराणसंहितां चक्रे पुराणार्थविशारदः॥ पुराण के स्वरूप एवं प्रयोजन के भली प्रकार से ज्ञाता कृष्ण द्वैपायन ने पुराण विषय के संग्रह की संहतिबद्धता को आख्यान, उपाख्यान गाथाओं और कल्पशुद्धियों से समन्वित किया।
ख्या प्रकथने धातु, आ उपसर्ग तथा भाववाचक ल्युट् प्रत्यय (व्यवहारात्मक रूप यु-अन) के योग 'आख्यान' का अर्थ है साधारण व्यवहार से कुछ प्रकृष्ट और सर्वाङ्गीण पक्ष से समन्वित कथन। इस शाब्दिक अर्थ के परिप्रेक्ष्य में किसी के जीवन का स्वप्रत्यक्ष चरित वर्णन करना पारिभाषिक रूप में 'आख्यान' कहा जाता है। ऐसे किसी आख्यान को कोई अन्य अपने ग्रन्थ में प्रासङ्गिक रूप में ग्रथित करता है तो वह 'उपाख्यान' कहा जाता है। महाभारत को इस दृष्टि से देखते हैं तो कुरुवंश के प्रतीपशान्तनु-भीष्म आदि के साथ जनमेजय तक का सम्पूर्ण चरित व्यास निबद्ध होने से आख्यान है। यहीं प्रासङ्गिक रूप में भगवान् राम का चरित भी निबद्ध है। यह उपाख्यान है व्यास इसके स्रोत नहीं हैं, मूलतः आख्याता भगवान् वाल्मीकि इसके स्रोत हैं अतः रामायण वाल्मीकि की उपज्ञा का परिणाम भगवान् राम का चरित, वाल्मीकि का आख्यान-निबद्धा के रूप में, राम का आख्यान-नायक के रूप में है। जब भगवान् व्यास इसे 'रामोपाख्यान' कहते हैं तो बिना कहे भी वे वाल्मीकि का ऋण स्वीकार करते हुए उनके प्रति श्रद्धा प्रकट करते हैं। इस चरित की विश्वसनीयता के लिए वाल्मीकि का नाम एक मोहर (मुद्रा) लगाने का काम भी करता है। यदि किसी आख्यान का कर्तसम्बन्ध ज्ञात नहीं है एवं परम्परागत श्रवणश्रावण से मिला है अथवा इतिहास की दृष्टि से सुप्रसिद्ध है तो उसे भी महाभारत में भगवान् व्यास ने उपाख्यान ही कहा है, इनके उदाहरण दो तो अतीव प्रसिद्ध हैं १. नल-दमयन्ती, २. सावित्री-सत्यवान्, जन. जन की जिह्वा पर नाचती जीवनप्रद ये कथाएँ किसी समग्र आख्यान संहिता के रूप में न मिलने पर भी 'इतिहास' के रूप में एक प्राचीन थाती की भाँति व्यास तक पहुँची है प्रासङ्गिक रूप में महाभारत-पात्र युधिष्ठिर के शोक को दूर करने के लिए महर्षि मार्कण्डेय
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