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पुराणनिर्माणाधिकरणम् गाथाएँ प्रचलित हैं, ये लोकभाव स्थायीरूप से लोक कण्ठहार बने रहें एतदर्थ इन्हें पुराण में भी सन्निविष्ट करने पर भगवान् व्यास ने बल दिया। स्मरणीय है कि वेद में भी ऐसी गाथाएँ हैं।
ऋग्वेद के ब्राह्मण ‘ऐतरेय ब्रा.' में शुनःशेप के आख्यान को 'ऋक्शतगाथम्' कहा है (३३.६) है। सुप्रसिद्ध अनुष्टुप् पद्य जो प्रायः ऐसे अवसरों पर बोला जाता है, इसी आख्यान की गाथा है
कलिः शयानो भवति संजिहानस्तु द्वापरः। उत्तिष्ठस्त्रेता भवति कृतं संपद्यते चरन् चरैवेति ॥ ३३.३ श्रीमद्भागवत ९/७/४-२३ में यहाँ के पूरे आख्यान का यथावत् काव्यानुवाद है। महाभारत द्रोणपर्व ५९ में राम का चरित है। वहाँ अनेक गाथाएँ हैं, जिनमें एक
है
अतिसर्वाणिभूतानि रामो दाशरथि र्बभौ। ऋषीणां देवतानां च मानुषाणां च सर्वशः।
पृथिव्यां सहवासोऽभूत् रामे राज्यं प्रशासति ॥१२॥ ऋषि तपःस्थलियों को, देवता स्वर्गलोक को छोड़कर पृथ्वीलोक-भारत भूमि - में आकर साथ रहने लगे थे। राम की तेजस्विता सभी भूतों से बढ़ी-चढ़ी थी। स्वर्ग अन्तरिक्ष . और भूलोक में विभाजित पृथ्वी जैसे भूलोक में ही सीमित रह गयी यह इसका भाव है।
कल्पशुद्धि नित्य, नैमित्तिक और काम्य कर्मों के यथावत् निष्पादन के लिए उद्देश्य, देश, काल, सामग्री, पुरोहित, विधि आदि विचार का अवसर सभी के जीवन में अनेकधा आता है, व्यष्टिगत, समष्टिगत, अनेक प्रश्न और समस्याओं के समाधान की अपेक्षा भी रहती है, अतः यह भी स्तम्भ भगवान् व्यास ने दिया। इन सबने पुराण के कलेवर को एक नयी आभा दी। व्यास ने यह सब कुछ लेकर सम्पादित पुराण संहिता लोमहर्षण को दी, लोमहर्षण के छः शिष्यों में से तीन शिष्यों ने अपनी-अपनी संहिताएँ तैयार की। व्यास संहिता पूर्णतया इनमें समा गयी। इस प्रकार ये चार संहिताएँ ही मूल मानी गयी। इनके आधार पर ही सभी पुराणग्रन्थों का निर्माण हुआ है।
इनमें प्रथम पुराण ब्रह्म पुराण तथा अन्तिम ब्रह्माण्ड पुराण है। इन चार संहिताओं से प्रथम ब्रह्म पुराण का निर्माण हुआ तो स्वतः सिद्ध है कि क्रम दृष्टि से शेष सभी पुराण परवर्ती हैं तथा संहिताचतुष्टय मूलक हैं। प्रत्यक्ष रूप में इनमें एक भी पुराण व्यास का नहीं है तथापि सभी महापुराणों को जो १८ हैं व्यास निर्मित इसीलिए कहा गया है कि
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