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पुराणनिर्माणाधिकरणम् इस ऊपर बताये गये आठ संहिता वाले मत की सुस्पष्ट स्थिति नहीं है तथा न इसका कोई विश्वसनीय उल्लेख ही है। वास्तविकता तो यह है कि लोमहर्षण के तीन शिष्य ही संहिताकार थे।
विष्णु पुराण, वायु पुराण तथा ब्रह्माण्ड पुराण इन छ: शिष्यों में से केवल तीन को ही संहिताकार मानते हैं जिनके नाम हैं-१. अकृतव्रण काश्यप २. सोमदत्ति सावर्णि तथा ३. सुशर्मा शांशपायन। तीनों का कथन सर्वथा स्पष्ट है(क) काश्यपः संहिताकर्ता सावर्णिः शांशपायनः ।
लोमहर्षणिका चान्या तिसृणां मूलसंहिता॥ वि.पु. ३.४.१८ (ख) त्रिभिस्तत्र कृतास्तिस्रः संहिता पुनरेव हि। वायु पु. ६१.५७
काश्यपः संहिताकर्ता सावर्णिः शांशपायनः।
मामिका च चतुर्थी स्यात् सा चैषा पूर्वसंहिता॥ ५८ (ग) त्रिभिस्तत्रकृतास्तिस्रः संहिता पुनरेव हि ॥ ब्रह्माण्ड २/३/६५
काश्यप: संहिताकर्ता सावर्णिः शांशपायनः। मामिका तु चतुर्थी स्याच् चतम्रो मूलसंहिता॥ ६६
तीनों में समान पद्य हैं। वायु तथा ब्रह्माण्ड सर्वथा समान भाषा का प्रयोग करते हैं। छ: में तीन शिष्यों ने संहिताओं का निर्माण किया, लोमहर्षण स्वयं वक्ता है अतः 'मेरी चौथी' कहता है वायु में इसे पूर्व संहिता तथा ब्रह्माण्ड में चारों मूल संहिता' कहा गया है। अर्थ एक ही है। विष्णु पुराण में वक्ता पराशर हैं अत: ‘एक अन्य लोमहर्षणकृत संहिता काश्यपादि तीनों की मूलसंहिता' कहा गया है।
भगवान् पराशर स्पष्ट कहते हैं कि लोमहर्षण की तथा उसके तीन शिष्यों की, चारों संहिताएँ ही सभी पुराणों की मूल हैं। यह कथन सर्वथा ठीक है।
आगे चलकर पुराणावतार शीर्षक के अन्तर्गत ओझाजी इस विष्णु पुराण के अनुसार ही सिद्धान्त की स्थापना करते हैं कि आज उपलब्ध १८ पुराण इन संहिता चतुष्टय के आधार पर ही हैं।
अष्टादशपुराण अवतरण पराशर मैत्रेय को पुराणोपदेश करते हुए कहते हैं किचतुष्टयेनाप्येतेन संहितानामिदं मुने। ३.४.१९ आद्यं सर्वपुराणानां पुराणं ब्राह्ममुच्यते। अष्टादश पुराणानि पुराणज्ञाः प्रचक्षते॥ २०
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