Book Title: Puran Nirmanadhikaranam
Author(s): Madhusudan Oza, Chailsinh Rathod
Publisher: Jay Narayan Vyas Vishwavidyalay

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Page 18
________________ पुराणनिर्माणाधिकरणम् विज्ञान के इस स्वरूप को कूर्मपुराण अति स्पष्ट रूप में बता रहा है— चतुर्दशानां विद्यानां धारणं हि यथार्थतः । विज्ञानमिति तद् विद्याद् येन धर्मो विवर्धते ॥ उपरिवि. १५.३२ अधीत्य विधिवद् विद्यामर्थं चैवोपलभ्य तु । धर्मकार्यान्निवृत्तश्चेन्न तद् विज्ञानमिष्यते ॥ ३३ विद्याओं को यथार्थ स्वरूप में जीवन में धारण करना विज्ञान है। इस 'धारणात्मक' विज्ञान से ही धारण स्वभाव धर्म की वृद्धि होती है अन्यथा धर्म धर्म ही नहीं है । विधिवत् विद्याध्ययन कर उसका अर्थ समझ कर भी धारण स्वरूप धर्म की करणीय क्रिया से दूर रहना विज्ञान नहीं है । १६ सहस्राब्दियों से पुराणों का पठन-पाठन और अनुसन्धान प्रायः निरन्तर रहा है, वह भी इसी वाङ्मय के दर्शन के साथ जो ओझाजी के समक्ष रहा है, किन्तु इस सत्य को क्या किसी से साक्षात् किया तथा परिणाम को निर्भीकता से प्रस्तुत करने में विज्ञानपुरस्सर पहल की ? न केवल पुराण, जिनका अनुपद ही ओझाजी ने निर्देश किया अि 'उनके 'विज्ञायते' की घोषणा के आधार हैं। अथर्ववेद का यह मन्त्र वही बात कह रहा है जो ब्रह्माण्डपुराण के विषय में ओझाजी कह रहे हैं— ऋचः सामानिच्छन्दांसि पुराणं यजुषा सह । उच्छिष्टाज्जज्ञिरे सर्वे दिवि देवा दिविश्रितः ॥ १९.७.२४ उच्छिष्ट से वेद की उत्पत्ति बताने वाला यह मन्त्र उन्हें विशिष्ट नाम के साथ प्रस्तुत कर रहा है जिन्हें ऋग्वेद, सामवेद, छन्दः (अथर्व) वेद, पुराणवेद तथा यजुर्वेद के रूप में पढ़ा गया । स्पष्ट है कि ‘पुराणवेद' वेदविशेष का नाम है। देवर्षि नारद 'इतिहासपुराणं पञ्चमं, वेदानां वेदम् (छान्दोग्य ७.१.२, ७.२.२) कहकर पुराण के वास्तविक रूप की वरिष्ठता बता रहे हैं कि ब्रह्म ( सृष्टिकर्ता, वेद) के उभयविध रूप का निरूपक होने से पुराण वेदों का वेद है। अतः ब्रह्म के अण्ड रूप इस सम्पूर्ण विश्व की सृष्टि के विषय में इदम्प्रथमतया कथन करने वाला पुराणवेद 'ब्रह्माण्ड पुराण वेद' नाम से व्यवहृत नहीं होगा तो फिर दूसरा नाम क्या हो सकता है ? इसकी पुष्टि में वे पुराणों के वचन भी उद्धृत करते हैं । इनमें मत्स्यपुराण द्वारा तीन तथ्य रखते हैं—१. वेद चतुष्टय एवं पुराण इन पाँच वेदों में स्मृति का प्रथम विषय पुराण है पश्चात् चार मुख से चार वेद । २. विषय रूप में विद्यमान पुराण प्रथम ग्रथन वेला में Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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