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भिषेक को कल्याणक मानना बताते हैं, परन्तु शास्त्रकारों ने श्रीतीर्थकर महाराज अपनी माता की कुक्षि में गर्भपने से आते हैं उसी को कल्याणक रूप माना है। इसीलिये श्रीवीर तीर्थकर त्रिशलामाता की कुत्ति में गर्भपने से आये उसको कल्याणक रूप मानते हैं । इस नियमानुसार शास्त्रकार महाराजों ने तीर्थकरों के राज्याभिषेक को भी कल्याणक मानना लिखा हो तो शास्त्रपाठ बतलाइये? हम मानने को तैयार हैं, अन्यथा किस तरह मानेंगे?
१४ [प्रश्न ] श्रीमहावीर तीर्थकर गर्भापहार द्वारा देवानंदा ब्राह्मणी के गर्भ से माता त्रिशलारानी के गर्भ में पाये उसी तरह श्रीऋषभदेव तीर्थकर ब्राह्मणी आदि अन्य माता के गर्भ से गर्भापहार द्वारा श्रीमरूदेवी माता के गर्भ में आये हों तो श्रीऋषभदेव स्वामी के भी ६ कल्याणक मानने के लिये खरतरगच्छ वाले तैयार हैं, किंतु शास्त्रों में वैसा पाठ हो तो तपगच्छ वाले बतलावें, अन्यथा श्रीवीर तीर्थकर के ६ कल्याणकों की तरह श्रीऋषभदेव स्वामी के भी ६ कल्याणक दृष्टांत दार्टीतिक भाव की तुल्यता से मानना वा बताना नहीं घटता है
और श्रीवीर तीर्थकर गर्भापहार के द्वारा श्रीत्रिशलामाता की कुत्ति में आये हैं वह कल्याणकरूप मानना, सब तीर्थकर अपनी अपनी माता की कुक्षि में आये हैं, वह कल्याणक रूप माने गये हैं उस दृष्टांत द्वारा घटता है, उसको न मानकर नीचगोत्रविपाकरूप अत्यंत निंदनीयरूप अकल्याणकरूप मानना तपगच्छ वाले बताते हैं, इसलिये यह सर्वथा सिद्धांत-विरुद्ध उत्सूत्र प्ररूपणा क्यों करते हैं ?
१५ [प्रश्न ] श्रीवीर तीर्थकर आश्चर्य रूप देवानंदा ब्राह्मणी की कुक्षि में गर्भपने से आये उसी को कल्याणकरूप Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com