Book Title: Prashnottar Vichar
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 71
________________ ( ७३ ) आगम विरुद्ध क्यों करते हो ? अथवा प्रागमविरुद्ध इस कदाग्रह मत को क्यों नहीं त्यागते हो? २२ [प्रश्न अभिवद्धित वर्ष में जैनटिप्पने के अनुसार प्राषाढ़ चतुर्मासी से २० दिने सांवत्सरिक कृत्ययुक्त गृहिज्ञात पर्युषण और लौकिक टिप्पने के अनुसार प्राषाढ़ चतुर्मासी से ५० दिने अवश्य केशलुंचनादि कृत्ययुक्त सांवत्सरिक प्रतिक्रमणादि श्रीपर्युषण पर्व करना आगम से संमत (युक्त) है, क्योंकि अपवाद से भी ५० वें दिन की रात्रि को गोलोममात्र भी शिर पर केश रखना नहीं कल्पता है, वास्ते उपर्युक्त केशलुंचन सांवत्सरिक प्रतिक्रमणादि सांवत्सरिक कृत्य किये विना ५० वें दिन की रात्रि को उलंघना नहीं कल्पता है, तो इस आज्ञा का भंग करके आगमविरुद्ध ८० दिने वा दूसरे भाद्रपद अधिकमास में ८० दिने केशलोचादि कृत्यों से प्रयुक्त पर्युषण क्यों करते हो ? इन २२ प्रश्नों के उत्तर तपगच्छ के श्रीमानंदसागरजी उत्सूत्र प्ररूपणा वा असत्यता को त्याग कर सत्य प्रकाशित करें। इत्यलं प्रसंगेन । * चौथा प्रश्न* तपगच्छ के श्रीवानंदसागरजी ने स्वप्रतिज्ञापत्र में लिखा है कि-"जिनवल्लभायोपस्थापनोपसंपदाचायपदेषु कतमत् श्रीनवांगीवृत्तिकारकश्रीअभयदेवसूरिभिः समर्पि-अर्थात् श्रीनवांगसूत्रों के टीकाकर्ता श्रीमद् अभयदेवसूरिजी महाराज के पट्टधर शिष्य श्रीजिनवल्लभसूरिजी महाराज को बड़ी दीक्षा १, उपसंपदा २और Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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